Gotavla

· Storyside IN · Vinmra Bhabal-এর কণ্ঠে
অডিওবুক
5 ঘণ্টা 33 মিনিট
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এই অডিওবুকের বিষয়ে

निसर्ग रोज कणाकणानं बदलत असतो, कालचा देखावा आज नसतो हे यादवांनी अत्यंत अलगदपणे आपल्यापुढे मांडले आहे. १९७१ साली अशा स्वतंत्र् मर्यादित विषयावर कादंबरी लिहीणे हा एक धाडसी प्रयोग असेल. तो तेव्हा किती यशस्वी झाला माहीत नाही. पण एका अनोख्या मनोविश्वाचे दालन आपल्यासमोर उघडे करणारे हे एक वैशिष्ट्यपूर्ण पुस्तक आहे यात शंका नाही. ग्रामीण भाषेच्या अजिबातच गंध नसलेल्या माझ्यासारख्या वाचकाला पहिली चार पाने जड जातीलही पण तरीही त्या रसाळ कथनात गुंगवून टाकणारा गोडवा आहे, शेताकडेला उभं राहून नजर खिळवून ठेवणारी दृश्य आहेत आणि ती ढोरमेहनत पाहून पीळ पाडणारे, मन हेलावणारे नाट्य आहे. रोजच्या आयुष्यात नावीन्य शोधायला लावणारी कल्पकता आहे. प्राणीविश्वापासून दुरावत चाललेल्या आपल्या आणि पुढेही येणार्‍या अनेक पिड्यांकरता जपून ठेवावा असा वारसा - गोतावळा.

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