oct 2019 · Storyside IN · Narración de Sanjeev Tiwari
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"'सबके घर अब किसी दुकान टाइप लगने लगे थे. घर में घर के लिए जगह नहीं रह गई थी." ज्ञान चतुर्वेदी का यह उपन्यास उस समय की कल्पना करता है जब सब कुछ बाज़ार के घेरे में आ जाएगा. अभी फेंटेसी अभी यथार्थ - इस उपन्यास की दुनिया में मनुष्यों के कोई नाम नहीं वे सब पागल हैं और उनको बाढ़ घेर रहा है. मनुष्यों जैसे नामों वाला मनुष्यों की तरह बर्ताव करने वाला बाज़ार. ख़ुद उन्हीं के शब्दों में यह उपन्यास "जीवन को बाज़ार से बड़ा मानने वाले पागलों" और अच्छे-बुरे सभी 'कस्टमर्स' के लिए एक चेतावनी है.