अठारहवीं सदी के महान चिंतक, लेखक और दार्शनिक ज्यां-जाक रूसो की आत्मकथा न केवल दुनिया की सबसे पहली प्रामाणिक आत्मकथा है, बल्कि सबसे ज़्यादा बेबाक और चौंकाने वाली भी. मनुष्यों की असाधारण समझ, उनके दिलों में झांकने की असाधारण क्षमता - और इसके साथ ही भाषा पर एक अनूठी और अद्वितीय पकड़ - इसे एक अनुपम कृति बना देते हैं. दो भागों में प्रकाशित आत्मकथा के पहले भाग में बिन मां का बच्चा ज्यां-जाक एक असामान्य बचपन, और फिर उतनी ही असामान्य युवावस्था में से गुज़रता हुआ कई असाधारण स्थितियों और स्त्रियों के संपर्क में आता है - जीवन और उसकी अनंत संभावनाओं को बड़े कौतूहल से टटोलता हुआ-सा! आत्मकथा का पहला भाग जहां रूसो की भावनाओं और व्यक्तित्व के विकास को समर्पित है, वहीं दूसरा भाग उसके सृजनात्मक और वैचारिक विकास को; संभ्रांत महिलाओं और ऊंचे साहित्यकारों-कलाकारों की दुनिया से जुड़े प्रलोभनों और ख़तरों को; और उन षड्यंत्रों को भी, जिन्होंने इस महान लेखक को अपना देश त्यागने और राजनीतिक शरण की तलाश में देश-दर-देश भटकने पर विवश कर दिया. रूसो की आत्मकथा जिं़दगी को एक ऊंचाई से - एक ऊंची नैतिक-शक्ति के साथ - देखने की प्रेरणा देती है।
Életrajzi művek és emlékiratok