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स्वातंत्र्यशाहीर शिवराम महादेव परांजपे यांच्या आठ निवडक निबंधांचा श्री. खांडेकरांनी संपादित केलेला हा संग्रह. कल्पकतेचा स्वच्छंद विलास आणि पानापानांतून व्यक्त होणारी उत्कट स्वातंत्र्यभक्ती ही दोन गुणवैशिष्ट्ये शि. म. परांजप्यांच्या निबंधांत प्रकर्षानं आढळून येतात. देशभक्ती हा त्यांच्या प्रतिभेचा एकमेव आवडता रस होता. त्या प्रतिभेचे सामथ्र्य एवढे जबरदस्त होते, की इतरांनी ललित वाङ्मयाच्या आधाराने करून दाखवलेले चमत्कार, शिवरामपंतांनी ज्यात काव्याला विंâवा भावनेला फारशी जागा नाही, असे मानण्याचा परंपरागत संकेत होता, त्या निबंधासारख्या वाङ्मयप्रकाराच्या साहाय्याने लीलेने केले. देशभक्तीच्या रसाने उत्पुâल्ल झालेली आणि कल्पनेच्या सौंदर्याने नटलेली त्यांच्या निबंधांतील मनोहर स्थळे महाराष्ट्रात पिढ्यान् पिढ्या लोकांना आनंद देत राहतील, त्यांचे उद््बोधन करतील.

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