Aarakshan Aik Abhishap Hai: Poetry

· Uttkarsh Prakashan
3.1
Maoni 12
Kitabu pepe
96
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आरक्षण के नाम हमारे नेता देश को बाट रहे हैं, उच्च जाति एवम् निम्न जाति, इससे योग्य उम्मीदवार का चयन न होकर अयोग्य उम्मीदवार पदासीन हो जाता है। तथा देश आगे बढ़ने के स्थान पर पीछे हटने लगता है। योग्यता या अयोग्यता जाति से नहीं अपितु ईश्वरीय प्रदत्त गुण होता है जो प्रत्येक में नहीं होता । एक क्लर्क गार्ड का कार्य नहीं कर सकता और न ही गार्ड कलर्क का । उन्हें उनकी योग्यता अनुसार ही कार्य मिलता है, योग्यता ही उन्नति का मार्ग खोलती है, हाँ यदि निम्न श्रेणी को उच्चासन देना है तो उसे प्राथमिक शिक्षा से ही गुणवान बनाना चाहिये न कि उसके दिमाग में डाल दिया जाये कि वो विद्यार्थी जीवन में भी मोजमस्ती करे और कार्य क्षेत्र में उसे प्राथमिकता तो प्राप्त हो ही जानी है । फिर क्यों वो प्रारम्भ से मेहनत करे, पेड़ पर लटके हुये फल को पाने के लिए सभी को परिश्रम की आवश्यकता है फिर आरक्षण के नाम पर निम्न श्रेणी के विधार्थियों के लिये डाली को क्यों झुकाया जाता है । आज 37 प्रतिशत दलित गरीबी रेखा से नीचे है जबकि 45 प्रतिशत दलित पढ़ना लिखना नही जानते, 27 प्रतिशत दलितों को पुलिस स्टेशन तक नही जाने दिया जाता, 38 प्रतिशत बच्चों को अलग से बैठकर खाना खिलाया जाता है, 23 प्रतिशत दलितों का संचार माध्यम से सम्बन्ध नहीं होता, 48 प्रतिशत दलितों को गाँव में पानी एक ही स्थान पर नहीं लेने दिया जाता, हिंदुस्तान के आधे दलित बच्चों को पोषक आहार नहीं मिलता, जिसमे 21 प्रतिशत में आयु के अनुसार वजन नहीं मिलता, 12 प्रतिशत बच्चे अपना पांचवा जन्मदिन मनायें बिना ही दुनिया से विदा हो जाते हैं तथा ग्रामीण क्षेत्रांे की 38 प्रतिशत महिलाये आज भी अनपढ़ हैं फिर ये आरक्षण का लाभ कौन ले रहा है ? ये आंकड़े मैंने इंटरनेट से लिये हैं इनमंे अगर कोई अनियमिता मिलती है तो मैं कोटि-कोटि माफी का पात्र हूँ । आरक्षण जाति आधार पर नहीं अपितु आर्थिक आधार पर होना चाहिये, जिसे आवश्यकता है उसे ही प्राथमिकता मिलनी चाहिये तथा आरक्षण के स्थान पर शिक्षा में प्रतिभाओं के प्रोत्साहन का प्रावधान होना चाहिये। एक उच्च स्तरीय आयोग का गठन होना चाहिये जो आर्थिकता तथा प्रतिभा अनुसार आरक्षण के प्रारूप का निर्माण करे न कि जाति या किसी धर्म के आधार पर। यदि किसी का कद छोटा है तो उसे फल देने के लिये नीचे से सहारा देना चाहिये न कि डाल तोड़कर उसके हाथ में दे दी जाये, हम सब हिंदुस्तानी हैं अतः आरक्षण के आधार पर हमें बाटा नहीं जाना चाहिये, पशु-पक्षी अलग अलग हो सकते हैं लेकिन एक ही संरचना युक्त मानव आरक्षण के आधार पर अलग-अलग नहीं किये जा सकते, ये नेताओं की कुपित चाल है जिन्होंने आरक्षण विभाजन को वोट बैंक बनाकर सत्ता हथियाने का एक औजार बना लिया है । जो पीछे हैं उसे आगे करना नैतिकता है पर जो आगे हैं उसे पीछे करना कहा की समझदारी है । आज युवाओं को इन नेताआंे की कुपित चालों को समझना ही होगा तभी देश तरक्की कर सकेगा । अतः अंत मंे आरक्षण को मैं एक भीख ही कहूँगा और भीख वही लेता है जो अयोग्य होता है, सुयोग्य अपना स्थान खुद ही निर्धारित करता है, एक सिपाही को कठिन परीक्षा के पश्चात ही बंदूक मिलती है, अयोग्य के हाथ में बंदूक देने से क्या होगा । मेरे प्यारे देशवासी पाठकों अब फैसला आपके हाथ में है कि आज के स्वरूप का आरक्षण खत्म होना चाहिये या नहीं । जय हिन्द राजीव पाराशर

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