‘जूठे गुलाब जामुन’ पार्टी फंक्शन में जूठी प्लेट उठाने वाले मशालची के रूप में काम करने वाले असहाय बालकों की कहानी है, जिन्हें बारह घंटे जिल्लत झेलने के बाद मजदूरी के नाम पर अधिकतम तीन सौ रुपये और भोजन नसीब होता है और साथ में गुलाब जामुन चोरी का इल्जाम थोपते हुए दंड भी मिलता है। इस कहानी का अंत संवेदनशील व्यक्ति को काफी कुछ सोचने को विवश करता है।
कहानी संग्रह ‘जूठे गुलाब जामुन’ के लेखक अनिल कुमार की प्रकाशित होने वाली यह छठी पुस्तक है। वित्तीय संस्थान केनरा बैंक के वरीय प्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त श्री अनिल कुमार जी ने जीविकोपार्जन के उद्देश्य से लिपिक के पद से बैंकिंग क्षेत्र में सेवा की शुरुआत की थी। उनका जन्म पटना शहर से सड़क और रेल मार्ग से जुड़े एक गाँव में हुआ था। कक्षा पाँच तक की शिक्षा गाँव के प्राथमिक विद्यालय में और पड़ोस के गाँव में स्थित उच्च विद्यालय से हाई स्कूल तक की पढ़ाई की थी।
ग्रामीण परिवेश में पले-बढ़े अनिल कुमार जी के पिताजी की अभिलाषा अपने सबसे छोटे व चौथे पुत्र को डॉक्टर के रूप में देखने की थी, लेकिन अनिल कुमार जी इस पर खरे नहीं उतर पाए थे। असफलता से आहत अनिल कुमार जी ने देहरादून में कार्यरत अपने बड़े भाई श्री सुरेंद्र शर्मा जी की छत्रछाया में रहकर अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल की थी, अध्यापन के क्षेत्र में जगह बनाने के उद्देश्य से। साहित्य के प्रति अटूट लगाव देहरादून में ही पल्लवित हुई थी। बड़े भाई ने प्रत्यक्ष रूप से भले ही प्रोत्साहित नहीं किया था, किन्तु परोक्ष रूप से उनका अमूल्य योगदान अविस्मरणीय रहा है। उनके कार्यालय में कार्यरत टाइपिस्ट श्री नेगी जी का शुरुआती दिनों की कहानी और कविताओं को बिना किसी स्वार्थ के टाइप करना बड़े भाई श्री सुरेंद्र शर्मा जी के परोक्ष प्रोत्साहन के बिना संभव नहीं था।
अब तक इनके तीन कहानी संग्रह ‘गाँव जाती पगडंडी’, ‘काजू की बर्फी’ और ‘भरोसे पर भरोसा’ के अतिरिक्त एक कविता संग्रह ‘रिश्तों के कुरुक्षेत्र में स्त्री’ और एक मगही उपन्यास ‘चलs गनेसी गाँव’ प्रकाशित हो चुके हैं