‘भाबनागुलो’ अर्थात चिंताच चिंता..समाजातील अस्वस्थ करणाऱ्या घटनांचे संवेदनशील मनात उमटणारे पडसाद या पुस्तकात प्रतिबिंबित होतात. कवीमनाच्या तसलिमा नासरिन नानाविध विषयांवर मुक्त चिंतन करतात. मुल्ला-मौलवीच्या फतव्यांमध्ये घुसमटणारं स्त्रीमन...मूलतत्त्ववादाच्या भोवऱ्यात अडकलेला राष्ट्रवाद...स्थलांतरातली अपरिहार्यता...अशा प्रश्नांची सल तसलिमा नासरिन यांना टोचणी देत राहते. त्यातून त्या अंतर्मुख करणारे प्रश्न विचारतात. त्यांच्या या अभिव्यक्तीतून जणू समकालीन वास्तवाचा आरसा आपल्यासमोर उभा ठाकतो. आणि सामाजिक चिंतांकडे अंगुलीनिर्देश करत राहतो.
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