Bandhan : Mahasmar -1

· Vani Prakashan
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‘महाभारत’ युद्ध-कथा मात्रा नहीं है। वस्तुतः वह व्यक्ति तथा समाज के विकास की यात्रा-गाथा है। युद्ध उसके मध्य में है। युद्ध से पूर्व वे कारण और परिस्थितियाँ हैं जो युद्ध तक ले जाती हैं, और युद्ध के पश्चात् वे परिस्थितियाँ तथा मनोविज्ञान हैं जिससे मनुष्य युद्धक मनःस्थिति से ऊपर उठने तथा शाश्वत सुख और शान्ति को प्राप्त करने की यात्रा आरम्भ करता है।


महाभारत की कथा के विभिन्न खण्डों में विभिन्न चरित्र घटनाओं के अनुसार महत्त्वपूर्ण होकर उस खण्ड के नायक प्रतीत होने लगते हैं, किन्तु सम्पूर्ण कथा का नायक धमर्राज युधिष्ठिर ही है। उसके परिवेश का निर्माण उस दिन से आरम्भ होता है जिस दिन भीष्म अपने पिता शान्तनु के दूसरे विवाह के लिए मार्ग प्रशस्त करने हेतु दो प्रतिज्ञाएँ करते हैं।


‘बन्धन’ शान्तनु, सत्यवती तथा भीष्म के मनोविज्ञान तथा जीवन-मूल्यों की कथा है। घटनाओं की दृष्टि से यह सत्यवती के हस्तिनापुर में आने तथा हस्तिनापुर से चले जाने के मध्य की अवधि की कथा है, जिसमें जीवन के उच्च आध्यात्मिक मूल्य जीवन की निम्नता और भौतिकता के सम्मुख असमर्थ होते प्रतीत होते हैं, और हस्तिनापुर का जीवन महाभारत के युद्ध की दिशा ग्रहण करने लगता है। उस भावी विनाश से मानवता को बचाने के लिए कृष्ण द्वैपायन व्यास अपनी माता सत्यवती को हस्तिनापुर से निकाल अपने साथ ले जाते हैं, किन्तु तब तक हस्तिनापुर शान्तनु, सत्यवती तथा भीष्म के कर्म-बन्धनों में बँध चुका है और भीष्म भी उससे मुक्त होने की स्थिति में नहीं रहे हैं।

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À propos de l'auteur

नरेन्द्र कोहली का जन्म 6 जनवरी 1940, सियालकोट ( अब पाकिस्तान ) में हुआ । दिल्ली विश्वविद्यालय से 1963 में एम.ए. और 1970 में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की । शुरू में पीजीडीएवी कॉलेज में कार्यरत फिर 1965 से मोतीलाल नेहरू कॉलेज में । बचपन से ही लेखन की ओर रुझान और प्रकाशन किंतु नियमित रूप से 1960 से लेखन । 1995 में सेवानिवृत्त होने के बाद पूर्ण कालिक स्वतंत्र लेखन। कहानी¸ उपन्यास¸ नाटक और व्यंग्य सभी विधाओं में अभी तक उनकी लगभग सौ पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। उनकी जैसी प्रयोगशीलता¸ विविधता और प्रखरता कहीं और देखने को नहीं मिलती। उन्होंने इतिहास और पुराण की कहानियों को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में देखा है और बेहतरीन रचनाएँ लिखी हैं। महाभारत की कथा को अपने उपन्यास "महासमर" में समाहित किया है । सन 1988 में महासमर का प्रथम संस्करण 'बंधन' वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुआ था । महासमर प्रकाशन के दो दशक पूरे होने पर इसका भव्य संस्करण नौ खण्डों में प्रकाशित किया है । प्रत्येक भाग महाभारत की घटनाओं की समुचित व्याख्या करता है। इससे पहले महासमर आठ खण्डों में ( बंधन, अधिकार, कर्म, धर्म, अंतराल,प्रच्छन्न, प्रत्यक्ष, निर्बन्ध) था, इसके बाद वर्ष 2010 में भव्य संस्करण के अवसर पर महासमर आनुषंगिक (खंड-नौ) प्रकाशित हुआ । महासमर भव्य संस्करण के अंतर्गत ' नरेंद्र कोहली के उपन्यास (बंधन, अधिकार, कर्म, धर्म, अंतराल,प्रच्छन्न, प्रत्यक्ष, निर्बन्ध,आनुषंगिक) प्रकाशित हैं । महासमर में 'मत्स्यगन्धा', 'सैरंध्री' और 'हिडिम्बा' के बारे में वर्णन है, लेकिन स्त्री के त्याग को हमारा पुरुष समाज भूल जाता है।जरूरत है पौराणिक कहानियों को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में समझा जाये। इसी महासमर के अंतर्गततीन उपन्यास 'मत्स्यगन्धा', 'सैरंध्री' और 'हिडिम्बा' हैं जो स्त्री वैमर्शिक दृष्टिकोण से लिखे गये हैं ।

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