मुझे पता है मुझमें अनंत 'मैं' समाहित हैं। अलग-अलग लोगों के सामने अलग-अलग 'मैं' इंटरैक्ट करता है, कौनसा 'मैं' कौन से व्यक्ति से इंटरैक्ट करेगा यह वो सामने वाला व्यक्ति स्वयं चुनता है, और इस चुनाव प्रक्रिया पर 'पहले मैं' का कोई नियंत्रण नहीं होता है। जब भी किसी व्यक्ति से संबंध खराब होता है और उसकी पीड़ा सहनी होती है, तब शीशे के सामने खड़ा 'पहला मैं ' पाता है कि सारे 'मैं' उसे पहचानने से इंकार कर देते हैं, और तब सबसे पहले जो 'मैं' उस व्यक्ति से इंटरैक्ट कर रहा था वो गुम होता है, फिर धीरे-धीरे सारे 'मैं' गायब हो जाते हैं, अपना पल्ला झाड़ लेते हैं।
कुछ समय बाद सारे 'मैं' सोफे पर बैठकर उन्हीं सब किताबों को पढ़ रहे होते हैं जिन्हें 'पहले मैं' ने सिर्फ खरीदी थी, पढ़ी कभी नहीं। और हमेशा की तरह शीशे के सामने पीड़ा सहने को तैयार खड़ा अकेला 'पहला मैं'।
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