सत्य और न्याय की स्थापना, संरक्षण और संवर्धन के लिए ही देश के संविधान ने विभिन्न संस्थाओं को नैतिक और कानूनी अधिकार दिये हैं। इन संस्थाओं के सुगम संचालन के लिए ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ लोगों को पदासीन किया गया है। संविधान का उद्देश्य अन्तिम मानव तक न्यायोचित, मानवीय अधिकारों को पहुंचाना है। लेखक अशोक कुमार पाण्डेय ने अन्याय के विरुद्ध संघर्ष किया है तथा अपने विरुद्ध होते अन्याय से अधिकारियों को अवगत कराते हुए न्याय की मांग की है, परन्तु लम्बी चलती न्याय-व्यवस्था, खर्चीली प्रक्रिया और असंवेदनशील व्यवहार ने न्याय के प्रति समाज को निराश किया है। आमरण अनशन, व्रत और आत्महत्या को बाध्य व्यक्ति यदि न्याय पाने में सफल नहीं हो सका है, तो क्या हमारी व्यवस्था लांक्षित नहीं होती है?