जिस प्रकार कबीर दोहावली तुलसी या रहीम दोहावली से सभी पाठकगण परिचित हैं उसी प्रकार "चंचलवाणी" दोहों का एक संग्रह है जिसके रचयता किशोर चंचल हैं, उन्होंने अपने जीवन के कई अच्छे-बुरे अनुभवों को शब्दों में पिरोकर दोहों के रूप में प्रस्तुत किया है जिसमें समाज की कुछ कुरीतियाँ आपसी रिश्ते तथा मतभेदों की बातें हैं,
एक अंतर्विरोध , एक संदेश है जो शायद कुछ लोगों को बहुत अच्छा लगेगा और हो सकता है कुछ बुद्धिजीवी इसे समझ नहीं पायेंगे सबके अपने-अपने विचार हैं इसलिए पाठकों से मेरा अनुरोध है कि "चंचलवाणी" एक बार अवश्य पढें।