लेखक ने प्रस्तुत पुस्तक के माध्यम से संदेश देने का प्रयास किया है कि राजनीतिक दल अपने चुनावी घोषणापत्र में जो वचन जनता को देते हैं उन्हें पूर्ण करने के लिए भी वे अनिवार्यतः बाध्य हों। ऐसा प्रयास किया जाए कि उनके घोषणापत्र को वचनपत्र का नाम दिया जाए। लेखक ने इस संबंध में कई राजनीतिक पार्टियों के चुनावी घोषणापत्रों का सूक्ष्मता से विश्लेषण किया है। जिससे पुस्तक पठनीय और संग्रहणीय बन गयी है। श्री आर्य ने केवल समस्याओं को उठाया ही नहीं है, अपितु समस्याओं का समाधान देने का भी प्रयास किया है,जिससे पुस्तक की उपयोगिता में चार चांद लग गए हैं।
श्री आर्य ने प्रस्तुत पुस्तक के माध्यम से जो संदेश देश और देशवासियों को दिया है वह निश्चय ही सराहनीय है। मैं श्री आर्य के इस प्रयास के लिए उन्हें बधाइयां और शुभकामनाएं देता हूं कि वे यशस्वी हों और अपनी प्रखर लेखनी के माध्यम से देश और समाज का इसी प्रकार मार्गदर्शन करते रहें।