दीपशिखा ने इसी प्रेम को गहराई से लिखा है और कोशिश की है उसे वह मुक़ाम देने की, जिसका वह हमेशा से हकदार है। उनकी लिखी यह सारी कविताएँ बहुत ही सराहनीय हैं, लेकिन ‘तुम! हाँ तुम ही हो,’ ‘शर्माना कोई तुमसे सीखे,’ ‘दूर कहीं बादल,’ ‘यादों की नरम घास,’ ‘मेरी हर बात पर ऐतराज़,’ ‘झूठ पकड़ा गया’ जैसी कविताएँ उनकी लेखनी की क़ाबिलियत को बताती हैं। कुछ कविताएँ बहुत ही सरल, तो कुछ बहुत ही गहरे भाव लिए हुए हैं और यह गहराई उनकी लिखी ‘बलात्कार’ कविता से जाहिर होती है। साथ ही है ‘श्याम सुनो’ कविता बहुत-बहुत ही ज़्यादा शानदार बन पड़ी है।
आप दीपशिखा गोंड 'शिखा' मूल रूप से मऊ, उत्तर प्रदेश की निवासी हैं और वर्तमान समय में जामनगर, गुजरात में निवास करती हैं। आपने अपनी स्कूली शिक्षा मऊ, कानपुर से पूर्ण की, तत्पश्चात व्यावसायिक शिक्षा कानपुर विश्वविद्यालय से बी.टेक. की उपाधि प्राप्त की। वर्तमान समय में आप गृहिणी हैं।
लेखन में आपकी रुचि बाल्यकाल से ही थी। आप अपने भावों को शब्द रूप देकर काव्य रचना करते थे, परंतु उचित रूप से साहित्यिक वातावरण के अभाव में तत्कालीन समय में काव्य सृजन के बीज अंकुरित मात्र होकर रह गए और पल्लवित पुष्पित नहीं हो पाए। गत 3 वर्षों से आपके भीतर साहित्य सृजन की भावना जागृत हुई है और आप सतत् रूप से लेखन में सक्रिय हैं। वर्तमान समय में विभिन्न सामाजिक पटलों पर अपनी लेखनी सक्रिय रूप से चला रही हैं।
भाषा के स्तर पर आप उर्दू शब्दों से युक्त खड़ी बोली हिंदी का प्रयोग करती हैं। आप गद्य और पद्य दोनों विधाओं में लेखन करती है, परंतु पद्य विधा आपके हृदय के अधिक समीप है। आपके लेखन का प्रिय विषय 'प्रेम' है। आपकी 'फाग', हिंदी कविता संग्रह पूर्व में प्रकाशित हो चुकी है। आपकी लेखनी का स्वाभाव बेहद सरल एवं स्नेहाभिषिक्त रहता है, जो कि हर वर्ग के पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करने में सहायक रहता है।