Dhunva Barkarar Hai: Poetry

· Uttkarsh Prakashan
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भावनाएँ आती-जाती लहरों की तरह होती हैं । ये कभी-कभी दिल में तूफान मचाती हैं । शब्दों को कागज पर उकेर कर लहरों को शांत करना पड़ता है । कविताओं का संसार भी ऐसा ही है, अनायास ही कुछ भाव हृदय में स्पंदित होते हैं और कलम स्वतः चल पड़ती है । इंसानी रिश्तों की ज़मीनी हकीकत कविताओं के आभूषण हैं और कल्पनाएँ, श्रृंगार, ये कब कहाँ से अवतरित हो कुछ नहीं मालूम, ऐसी ही कुछ भावनाओं और कल्पनाओं के संयोग से कुछ कहने का प्रयास है । जिस तरह वक्त कल आज और कल के हिसाब-किताब का बही-खाता हाथ में थामे तीव्र गति से दौड़ रहा है । हम सब भी इसके पीछे भागने को विवश हैं । कुछ पाना कुछ खोना, यही संसार का नियम है । मेरी कविताएँ ‘धुआं बरकरार है’ ये काव्य संग्रह अतीत, वर्तमान, और भविष्य के मध्य एक सेतु की तरह है ।

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