भारत में राष्ट्रीय चेतना के कारण ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का जन्म हुआ। कांग्रेस प्रारम्भ से ही राष्ट्रीय संस्था के रूप में अपना राष्ट्रीय चरित्र बनाने में सफल रही। जिसके कारण महिलाएँ भी राजनीति में रुचि लेने लगीं। धीरे-धीरे कांग्रेस की लोकप्रियता के साथ महिलाएँ अपने वैचारिक चिन्तन एवं आत्मचेतन तथा आत्मविश्वास के साथ कांग्रेस के कार्यक्रमों में अपनी सक्रिय भूमिका निभाने लगीं। अहिंसा नीति की समर्थक उदारवादी-महिला सेनानियों ने कांग्रेस के राष्ट्रीय कार्यक्रमों में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करना प्रारम्भ कर दिया। बीसवीं शताब्दी में धीरे-धीरे महिलाओं में सामाजिक जागृति के साथ-साथ राष्ट्रीय चेतना के भी लक्षण दृष्टिगोचर होने लगे। उनके उत्थान एवं जागरण अभियान में अनेक महिलाओं ने भाग लिया जिनमें पण्डिता रमाबाई, स्वर्ण कुमारी देवी, सरला देवी, पार्वती देवी आदि ने अपूर्व कार्य किया। भारत के बाहर की महिलाएँ भी भारतीय महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत बनीं जिनमें एनी बेसेंट, मीरा बेन (मेडलीन स्लेड), मारग्रेट कुजिंस आदि महत्त्वपूर्ण थीं। इस समय विदेशों में भी अनेक नारीवादी आन्दोलन चल रहे थे। श्रीमती सरोजिनी नायडू ने भी महिलाओं के लिए स्त्री मताधिकार के पक्ष में अपने विचार प्रस्तुत किये। गाँधी जी के आह्वान से भी कांग्रेस में महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहन मिला। गाँधी जी अहिंसा को क्रान्तिकारी अस्त्र के रूप में प्रयोग करना चाहते थे क्योंकि ये महिलाओं के लिए उपयुक्त परिस्थिति निर्माण करने में सहायक था। प्रशासकों और शिक्षाविदों का ध्यान भी महिलाओं की ओर आकृष्ट हुआ।