फ़क़ीराना अंदाज़ शिर्डी साईबाबा के जीवन पर आधारित एक विशिष्ट उपन्यास है। हिंदी साहित्य में साईबाबा के जीवन पर यह पहला उपन्यास है। इसमें साईबाबा के जीवन के माध्यम से प्रेम के विराट स्वरूप को देखने का प्रयास किया गया है, उस प्रेम को जिसे कई बार लोग अनिवर्चनीय कहते हैं। यह प्रेम साईं के रोम-रोम में बसा था। लेकिन उसकी अभिव्यक्ति साईं ने सहज रूप में की जिसे लोगों ने केवल महसूस किया और उसे ही उपन्यास लेखक ने फ़क़ीराना अंदाज़ कहा है। जो भी साईबाबा के सान्निध्य में आए उन सभी ने इस अनिवर्चनीय प्रेम का रसास्वादन किया। इस फ़क़ीर ने लाखों प्यासी आत्माओं को तृप्त कर दिया। लाखों की मैली चदरिया साफ हो गई। ऐसा नहीं था कि इस र्साइं के जीवन में दुख के क्षण नहीं आए। ऐसे क्षण में ही तो साईं के चाहने वालों को आभास होने लगता था कि बाबा मानवीय संवेदना से प्रभावित होने की लीला कर कहे हैं। लेकिन साईं सचमुच दूसरे के दुख से प्रभावित होते थे और उनके निदान का उपाय करते थे। साईं के सान्निध्य में सत्य, प्रेम और समर्पण समनार्थक शब्द बन गए। ‘‘सत्यम् शिवम् सुन्दरम्’’ से परिपूर्ण उनकी गतिविधि ही उनका फ़क़ीराना अंदाज़ था। साईं के उसी अंदाज़ को इस उपन्यास में शब्दों के माध्यम से उकेरा गया है। यह उपन्यास अपनी कथा-वस्तु और प्रस्तुति की दृष्टि से महान कृतियों की श्रेणी में रखे जाने योग्य है।
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