‘सर्वोत्तम महापुरुष’ के नाम से विख्यात ईश्वरचंद्र विद्यासागर न केवल विद्यासागर; अपितु करुणासागर भी थे। अपने हितों की उपेक्षा कर सदैव दूसरे व्यक्ति का हित साधना; स्वयं को सुख-सुविधाओं से दूर रखकर दूसरे के कष्ट दूर करना जैसी बातें हमें अतिशयोक्ति भले ही जान पड़ें; किंतु विद्यासागरजी के जीवन की ये रोजमर्रा की घटनाएँ थीं। एक कर्मठ; उत्साही; परोपकारी; स्वाभिमानी; स्नेही व दृढ़ व्यक्तित्व के स्वामी ईश्वरचंद्र विद्यासागरजी अद्वितीय पुरुष थे। कहीं वे बच्चों की शिक्षा में सुधार के सुझाव कार्यान्वित करते हैं तो कहीं पुस्तक लेखन से अपनी प्रतिभा का परिचय देते हैं। कहीं सामाजिक कुरीतियों पर चोट करते हैं तो कहीं आंग्ल समाज के प्रभुत्व-संपन्न वर्ग से टक्कर लेते हैं। एक महान् समाज-सुधारक के रूप में ईश्वरचंद्रजी ने विधवा-विवाह को प्रोत्साहित किया और बहुपत्नी प्रथा जैसी कुरीति पर रोक लगाने का प्रयत्न किया। पैतृक वीरसिंह गाँव की जीर्ण-शीर्ण कुटिया से उठकर कलकत्ता महानगरी के उच्चाधिकारियों के बीच अपनी पैठ बनानेवाले ईश्वरचंद्र विद्यासागरजी ने जीवन में धन व मान-सम्मान सबकुछ पाया; किंतु सदा अपनी जड़ों से जुड़े रहे। अद्वितीय व्यक्तित्व के धनी ईश्वरचंद्र विद्यासागर की प्रेरणाप्रद जीवनी।
ការដាក់ផ្កាយ និងមតិវាយតម្លៃ
5.0
ការវាយតម្លៃ 1
5
4
3
2
1
វាយតម្លៃសៀវភៅអេឡិចត្រូនិកនេះ
ប្រាប់យើងអំពីការយល់ឃើញរបស់អ្នក។
អានព័ត៌មាន
ទូរសព្ទឆ្លាតវៃ និងថេប្លេត
ដំឡើងកម្មវិធី Google Play Books សម្រាប់ Android និង iPad/iPhone ។ វាធ្វើសមកាលកម្មដោយស្វ័យប្រវត្តិជាមួយគណនីរបស់អ្នក និងអនុញ្ញាតឱ្យអ្នកអានពេលមានអ៊ីនធឺណិត ឬគ្មានអ៊ីនធឺណិតនៅគ្រប់ទីកន្លែង។
កុំព្យូទ័រយួរដៃ និងកុំព្យូទ័រ
អ្នកអាចស្ដាប់សៀវភៅជាសំឡេងដែលបានទិញនៅក្នុង Google Play ដោយប្រើកម្មវិធីរុករកតាមអ៊ីនធឺណិតក្នុងកុំព្យូទ័ររបស់អ្នក។