Itna To Main Samajh Gaya Hoon

· Vani Prakashan
4,5
11 avis
E-book
164
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À propos de cet e-book

दीपक रमोला के प्रथम काव्य संग्रह में संकलित कविताएँ उनके जीवन की स्वानुभूत अभिव्यक्तियाँ हैं जिनमें उनका हृदय धड़कता है। इन्हें किसी एक मनोभूमि में नहीं समेटा जा सकता, ये अनेक अनुभवों की परछाईं हैं जैसे समुद्र के किनारे फैले शंखों में छिपे नाद। इनकी अभिव्यक्ति उम्र के पड़ाव से कहीं आगे विचरती है। नवयुवा मन में चुभन है जो ज़िन्दगी के आस-पास से लिए प्रसंगों को मुखरित कर देती है। कविता ‘ज़िन्दगी चोंच मारती है’ इसी का परिणाम है। दीपक की पैनी निगाहों में ज़िन्दगी एक आसान कसीदाकारी नहीं जिसमें सहज, सरल तरतीब से चलने वाले सूई-धागे की नफ़ासत उभरे। इनके लिए हर लम्हा एक चुनौती है जिसे स्वीकारना ही है अंजाम ना जाने क्या निकले। इनकी रचनाओं को पढ़कर समझना आसान है कि कहीं ये संवेदनशील कवि हैं, कहीं ग़ज़लकार और कहीं किसी कहानी की पकड़ी कड़ी को ख़ूबसूरती से गीतों में ढालते गीतकार। कवि हृदय सामयिक घटनाओं से उलझता है और परिणामतः सृजन होता है ‘इजाज़त’ और ‘एक बुरा सपना’। इनकी पर्वतीय उपत्यका में हुई परवरिश ने इन्हें प्रकृति से जुड़ने की प्रेरणा दी है। वहीं अन्दर तक भीगा हुआ तृप्त मन है जो आज की ज़िन्दगी की आपा-धापी से अनछुआ है। अगर प्यार है तो इन्तज़ार में अधिक रस है, मिलन में विकर्षण। ज़िन्दगी में मेहनत है, उपलब्धियाँ हैं पर गहन तनहाई है। जहाँ कवि ख़ुद ही से रू-ब-रू है रिश्ते, नाते, मीत सभी बेमानी हैं। ‘कितने रिश्तों की क्लास में नाकामयाब होकर तुम आये हो इस रिश्ते को आजमाने की ख़ातिर...’ उर्दू का प्रभाव कविताओं को सौम्य बनाता है। अनेक रचनाओं में की गयी स्वयं से गुफ़्तगू उनके जीवन के पहलुओं को उजागर करती है। बहुआयामी प्रतिभा के धनी दीपक कविता, गीत, ग़ज़ल, कहानी सहज ही लिख लेते हैं। इनके भाव और शब्दों में माधुर्य भरा है। ‘कच्ची-पक्की नज़्म’ में आम की कैरी से कवि की नज़्म की तुलना नयी उपमा और नये प्रतीकों से भरी है- ‘गिर जाती है जैसे एक सयाने पत्थर की चोट से आम के बग़ीचों में कैरी हश्र है नज़्मों का कुछ वैसा ही ज़िन्दगी में मेरी....’ दीपक की कविताओं में रूमानियत उनकी कहानियों से छिटककर बिखरी पड़ी है। सच्ची जीवन गाथाएँ हैं जिन्हें बड़ी शिद्दत से जीवन शिक्षा के रूप में उन्होंने यहाँ-वहाँ से सहेजा है। ये किसी दूसरे विकल मन को शान्त करने के लिए जीवन की टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों से गुजरी प्रेरणा स्त्रोत हैं। इनके फ़िल्मी गीतों में बहुत-सी सम्भावनाएँ अन्तर्निहित हैं- माँझी : द माउंटेन मैन, डियर डैड और सुप्रसिद्ध वजीर के गीत ‘अतरंगी यारी’ में इन्हीं की कलम की फनकारी दिखाई देती है। अनबूझ परिस्थितियों की छुअन से उभरी कविताओं का संकलन है- ‘इतना तो मैं समझ गया हूँ...’

Notes et avis

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À propos de l'auteur

'मैं तो बस यह सोच मन्त्रमुग्ध रहता हूँ कि अगर दुनिया की जनसंख्या 7.244 अरब है तो उतनी ही जीवन शिक्षाएँ हैं, जिनकी रौशनी लेकर आप जीवन की अँधेरी गलियों में उजाला पा सकते हैं' दीपक रमोला प्रोजेक्ट फ्युएल के प्रवर्तक हैं। FUEL का अर्थ है: Forward the Understanding of Every Life Lesson इनकी संस्था संसार भर के हर उम्र और पृष्ठभूमि के लोगों से जीवन की शिक्षा एकत्रित करती है। दीपक ने यह प्रोजेक्ट सत्रह वर्ष की आयु से आरम्भ किया था। इन्होंने शिक्षा को नवीन मोड़ दिया और आजतक चार वर्ष के बच्चों से लेकर छियानवे वर्ष की उम्र की नानी को पढ़ा चुके हैं। नेपाल के मानव तस्करी व भूकम्प से पीड़ित लोगों को राहत देने का प्रयास किया तो कभी यूरोप में निर्वासित सीरियाई शरणार्थियों का दर्द बाँटा। दीपक मुम्बई विश्वविद्यालय से मास मीडिया में स्वर्ण पदक विजेता होने के साथ-साथ यूनाइटेड नेशंस में वक्ता, टेड वक्ता, शिक्षाविद्, लेखक, अभिनेता और गीतकार हैं। एक गीतकार के रूप में इन्होंने माँझी​ ​:द माउंटेन मैन, टाइम आउट, डियर डैड, मानसून शूट आउट, और वजीर का प्रसिद्ध ‘अतरंगी यारी’ गीत लिखा है जिसे अमिताभ बच्चन व फरहान अख़्तर ने आवाज़ दी है । दीपक ने जून 2017 में ‘वाइज वॉल’ प्रोजेक्ट चलाया जिसमें देश भर के तक़रीबन दस कलाकारों और सौ स्वयं सेवकों के द्वारा उत्तराखण्ड के पलायन से प्रभावित गाँवों को पुनर्जीवित करने का उल्लेखनीय अभियान चलाया।

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