Azadi Ke Baad Ka Sangharsh: Azadi Ke Baad Ka Sangharsh: Struggles Post-Independence

· Prabhat Prakashan
5.0
2 reviews
Ebook
224
Pages
Ratings and reviews aren’t verified  Learn More

About this ebook

Explore the struggles post-independence with Azadi Ke Baad Ka Sangharsh, where the fight for freedom gives way to new challenges and aspirations.

आजादी की लड़ाई से भी ज्यादा आजाद भारत के राजनीतिक परिदृश्य में कृपलानीजी का खास स्थान है। कृपलानी ने जोर-शोर से अपनी राजनीतिक जिम्मेदारियों का निर्वाह किया। कृपलानी कभी चुप न रहे; और गांधी के नजरिए से सही क्या है—इस हिसाब से वह काम करते रहे। काफी फैसले उनके शोर मचाने से या ठीक मौके पर टोक देने भर से भी बदले।

यह पुस्तक विशेष महत्व की है, क्योंकि हमारे पास आजादी के बाद की बड़ी घटनाओं पर पुस्तक के नाम पर अखबारी कतरनों के संग्रह के अलावा कुछ नहीं पढ़ने को मिलता।

छत्तीस लेखों के माध्यम से आचार्यजी हमें आजाद भारत की शीर्ष की राजनीति के दाँव-पेंच (और कई बार की दुरभिसंधियों) के साथ शीर्ष के लोगों के आचरण को बताते हैं, चुनावी गड़बड़ और भ्रष्टाचार के गठजोड़ के किस्से बताते हैं, खुद इनके भुक्तभोगी होने का प्रसंग ले आते हैं। चीनी आक्रमण, गोवा की मु€त का आंदोलन, चीन द्वारा तिब्बत हड़पने की कहानी, भूदान के तूफान, राज्यों के भाषायी आधार पर पुनर्गठन का प्रसंग, पुलिस और शासन की ज्यादतियों के बड़े प्रसंग, पंचवर्षीय योजनाओं की समीक्षा, विदेश नीति की समीक्षा समेत काफी सारे विषयों पर उनकी अंतर्दृष्टि है। ये जरूरी और स्तरीय जानकारियाँ तथा जबरदस्त ईमानदारी का विश्लेषण उन सबको जरूर पढ़ना चाहिए, जिन्हें आजाद भारत के पहले तीन दशकों के शासन, नीतियों, फैसलों, घटनाओं और राजनीति के बारे में स्तरीय जानकारी पाने की भूख है।

आजादी की लड़ाई से भी ज्यादा आजाद भारत के राजनीतिक परिदृश्य में कृपलानीजी का खास स्थान है। कृपलानी ने जोर-शोर से अपनी राजनीतिक जिम्मेदारियों का निर्वाह किया। कृपलानी कभी चुप न रहे; और गांधी के नजरिए से सही क्या है—इस हिसाब से वह काम करते रहे। काफी फैसले उनके शोर मचाने से या ठीक मौके पर टोक देने भर से भी बदले।

यह पुस्तक विशेष महत्व की है, क्योंकि हमारे पास आजादी के बाद की बड़ी घटनाओं पर पुस्तक के नाम पर अखबारी कतरनों के संग्रह के अलावा कुछ नहीं पढ़ने को मिलता।

छत्तीस लेखों के माध्यम से आचार्यजी हमें आजाद भारत की शीर्ष की राजनीति के दाँव-पेंच (और कई बार की दुरभिसंधियों) के साथ शीर्ष के लोगों के आचरण को बताते हैं, चुनावी गड़बड़ और भ्रष्टाचार के गठजोड़ के किस्से बताते हैं, खुद इनके भुक्तभोगी होने का प्रसंग ले आते हैं। चीनी आक्रमण, गोवा की मु€त का आंदोलन, चीन द्वारा तिब्बत हड़पने की कहानी, भूदान के तूफान, राज्यों के भाषायी आधार पर पुनर्गठन का प्रसंग, पुलिस और शासन की ज्यादतियों के बड़े प्रसंग, पंचवर्षीय योजनाओं की समीक्षा, विदेश नीति की समीक्षा समेत काफी सारे विषयों पर उनकी अंतर्दृष्टि है। ये जरूरी और स्तरीय जानकारियाँ तथा जबरदस्त ईमानदारी का विश्लेषण उन सबको जरूर पढ़ना चाहिए, जिन्हें आजाद भारत के पहले तीन दशकों के शासन, नीतियों, फैसलों, घटनाओं और राजनीति के बारे में स्तरीय जानकारी पाने की भूख है।

Ratings and reviews

5.0
2 reviews

Rate this ebook

Tell us what you think.

Reading information

Smartphones and tablets
Install the Google Play Books app for Android and iPad/iPhone. It syncs automatically with your account and allows you to read online or offline wherever you are.
Laptops and computers
You can listen to audiobooks purchased on Google Play using your computer's web browser.
eReaders and other devices
To read on e-ink devices like Kobo eReaders, you'll need to download a file and transfer it to your device. Follow the detailed Help Center instructions to transfer the files to supported eReaders.