वर्तमान समय में देश अनेक गम्भीर समस्याओं से ग्रस्त है, उनमें से एक समस्या है- जातिवाद। इस जातिवाद के कारण हमारे देश की बहुत हानि हुई है और निरन्तर होती ही जा रही है। जो देश कभी संसार में अपने चरित्र, शिक्षा, शासन आदि की दृष्टि से आदर्श माना जाता था। आज भगवान् मनु का ही विश्वविख्यात देश जाति-व्यवस्था जैसे अभिशाप के कारण विखण्डत होता जा रहा है। कुछ देशद्रोही व विधर्मी लोग इसको बढ़ाने के लिए निरन्तर नयी-2 योजनायें बना रहे हैं। 'ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद...पदभ्यां शुद्रोऽजायत' इस मन्त्र के वास्तविक अर्थ को न समझकर और मिथ्या अर्थ को प्रचारित करके विधर्मी लोग आग में घी डालने का कार्य कर रहे हैं। दूसरी ओर प्राचीन काल से चली आ रही भगवान् मनु प्रोक्त वैदिक वर्ण-व्यवस्था, जो योग्यता व कर्म पर आधारित थी, जिसके अनुसार ही यहाँ की सम्पूर्ण शासन व्यवस्था चलती थी और जिसके कारण ही आय्र्यावर्त्त (भारत) में सुख व शान्ति का वातावरण था। अज्ञानतावश उस आदर्शे वर्ण-व्यवस्था को न समझने अथवा उसके विकृतरूप का अधिक प्रचार होने के कारण अनेक संगठन भगवान् मन् के विरोधी बन गये। इन सबका मूल कारण है- वेदमन्त्रों के यथार्थ स्वरूप को न जानना, इन सब पर विचार करने के उपरान्त पूज्य आचार्यश्री ने 'ब्राह्मणोऽस्य मखमासीद...' मन्त्र का वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक अर्थ संसार के समक्ष लाने का निर्णय लिया। यह लघु पुस्तिका मूलरूप से उपर्युक्त वेद- मन्त्र पर आधारित है। इसमें महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा कृत भाष्य की आधिभौतिक दृष्टि से व्याख्या भी की गयी है। इसके साथ ही वर्ण-व्यवस्था पर उठने वाली अनेक शंकाओं का समाधान भी इस पुस्तक में किया गया है। पुस्तक के अन्त में आरक्षण, जातिवाद व निर्धनता का स्थायी एवं सर्वोत्तम समाधान दिया गया है।