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वास्तव मे कलियों की सौगन्ध एक स्वर लहरी है।कैलाश चन्द शर्मा जी ने कविता के शब्दां को प्यार की सौगात बनाकर उपन्यास के कथानक मे ऐसा बाँधा है की मानव के जीवन के यथार्थ से सुगन्ध बिखेरता नजर आता है। ऐसा प्रतीत होता है मानो ‘शंकी’ जी ने यह कथानक अपने समक्ष जीता जागता देखा है और उसे ही अपने शब्दा के सौन्दर्य मे सजाकर श्रृंगारमयी बना दिया है। अपने प्रत्येक उपन्यास की तरह वे यहाँ भी अपनी रहस्यात्मक भाषा का मोह वो नहीं छोड़ पाए हैं। वैसे उनका यह कलियों की सौगन्ध पाँचवा उपन्यास है ‘शंकी’ जी दिल के समुद्र मे गहरे पैठ कर कलियों की सौगन्ध रूपी मोती निकाल कर लाये हैं।’’
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