Kashinath

Diamond Pocket Books Pvt Ltd
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125
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 यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि यदि बंगला साहित्य में से शरत् को हटा दिया जाए तो उसके पास जो कुछ शेष रहेगा वह न रहने के बराबर ही होगा । शरत् ने बंगला साहित्य को समृद्ध ही नहीं किया है अपितु परिमार्जित भी किया है । तत्कालीन बंगाल की सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और राजनैतिक स्थिति का चित्रण करते समय उनकी लेखनी केवल बंगाल तक ही सीमित नहीं रही, अपितु देश की तत्कालीन परिस्थितियों को भी स्पष्ट किया और यही आकर शरत् केवल बंगाल के ही नहीं वरन् समूचे देश के महान उपन्यासकार बन जाते हैं । तत्कालीन भारतीय समाज में फैली कुरीतियों और दुर्बलताओं के साथ-साथ शरत् ने उसकी विशेषताओं और गुणों को भी बड़ी कुशलता से चित्रित किया है ।

भारतीय नारी के बाह्य रूप के साथ-साथ उसके आंतरिक सौंदर्य, उसकी मनोभावनाओं का चित्रण शरत् ने जिस कुशलता से किया है, भारतीय भाषाओं का कोई भी उपन्यासकार आज तक भी उसे छू नहीं पाया है । भले ही वह  'देवदास' की पारो हो, 'शेष प्रश्न' की सबिता या फिर 'श्रीकान्त' की राजलक्ष्मी और अन्य नारी पात्र । शरत् ने नारी को जितने निकट से देखा है, जिस दृष्टि से देखा है वह निकटता और दृष्टि भारत के अन्य भाषाओं के उपन्यासकारों के पास नहीं मिलती ।

शरत् की रचनाएं इस उक्ति को सहज ही सार्थक और प्रामाणिक सिद्ध कर देती है कि साहित्यकार अपने युग का प्रतिनिधि ही नहीं उद्घोषक भी होता है ।

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