Kath Sarit Sagar

Diamond Pocket Books Pvt Ltd
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‘कथा सरितसागर’ के लेखक सोमदेव कश्मीरी ब्राह्मण थे। इस कथा ग्रंथ का रचना काल ग्यारहवीं शताब्दी रहा है। इस ग्रंथ की रचना कश्मीर की महारानी सूर्यमती के मनोविनोद के लिए की गई थी, ऐसा माना जाता है।

आकार की दृष्टि से कथा सरितसागर विश्व के दो प्रसिद्ध महाकाव्य ‘इलियड’ और ‘ओडिसी’ से प्रायः दुगुना है। यह ग्रंथ अठारह खंडों में विभक्त है, जिन्हें लंबक कहा जाता है। इनमें धार्मिक, पुनर्जन्म, राजा, राजकुमार आदि के साथ ही धूर्त, दुष्टों, मूर्खों, पाखंडियों आदि की भी रोचक कथाएं हैं। इन कथाओं की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इनमें व्यर्थ के आदर्श को कहीं भी प्रश्रय नहीं दिया गया है अपितु ढोंगी साधुओं, राजकुलों के षड्यंत्रों आदि का यथार्थ चित्रण हुआ है। हां, कथा सरितसागर में एक कथा प्रसंग विशेष से दूसरी कथा का तथा दूसरी से तीसरी का जन्म होता है, जिससे प्रायः पाठक पूर्व कथा-प्रसंग को भूल जाता है, अतः इस हिंदी रूपांतर में प्रत्येक कथा को स्वतंत्र रूप में प्रस्तुत किया गया है।

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