Kathamrit Prasang Bhaag 3

Chandan Sukumar Sengupta
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116
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महात्मा और आचार्य भी एक ऐसे विश्व चराचर की कल्पना किया करते थे जहाँ हर जीव का पोषण, संवर्धन और परिमार्जन हो सके | उन सभी जीवों को ऐसा सहारा मिले जिससे उनकी न्यूनतम ज़रूरतें पूरी हो सके और उन्हें किसी हिंसक गतिविधि का शिकार न होना पड़े | सिर्फ़ इतना ही नहीं व्यक्ति को खुद के साथ साथ समूह के गुणों को विकसित करने का भी मौका मिले | यह भी सुनिश्चित हो सके कि सबको पूर्ण रू से विकसित हने का अवसर मिल सके , विकास की धारा में कोई सुगमता भी रहे; उन्नत मानस के धनी विद्व जन खुद के अभ्यास को जारी रख सकें और समाज को भी इसका सम्यक ज्ञान हो कि देवत्व के अधिष्ठान को उसके सही स्वरूप में समझा जा सके | क्या सिर्फ़ भक्त ही अपने ईष्ट का संधान करें? या फिर सिर्फ़ ईष्ट को ही आने भक्त वत्सल का संधान करते रहना होगा? क्या किसी ख़ास परिधि में ही भक्त और देवत्व का सम्मेलन हो सकेगा? और भी ऐसे कई गंभीर प्रश्न कुछ अनसुलझे से रह जाते हैं जिसे हम अगले पड़ाव तक हाल कर पाने की तमन्ना ज़रूर रखेंगे; और यह भी चाहेंगे कि जनता जनार्दन का प्रबोधन कुछ इस रूप से हो जिसके बदौलत हम महात्मा के गण - अभ्यूत्थान के स्वप्न को वास्तविक होता हुआ देख सकें |

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Chandan Sengupta

(Chandan Sukumar Sengupta)

Working in the field of Science, Technology, Comparative Religion and Philosophy since 1995 onwards. Published different books on various subjects. Majority of publications are for fulfilling academic purposes and for providing additional study materials to fellow aspirants. Author took part in different seminars, conferences and workshops time to time; delivered services as Resource Person, Technical Associate and Research Scholar to different organisations.

Permanent Address: Arabinda Nagar, Bankura 722101 (WB)

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