अपने जीवनसाथी से जब पूर्ण समर्पित भाव से प्रेम करते हैं तो वह प्रेम पवित्रता के साथ-साथ अमिट और अमर हो जाता है। कुछ सामाजिक बुराइयों को भी दर्शाया गया है साथ ही कविताओं के माध्यम से युवाओं को अपनी मंज़िल के प्रति सतर्कता तथा अपने कर्मों के प्रति दृढ़ता बनाए रखने का संदेश भी दिया गया है।
मेरे मार्गदर्शक मेरे स्वर्गीय पिता के श्री चरणों में बारंबार नमन !
अरुण सिंह देशवाल
जन्म: 27 सितंबर, 1988
जन्म भरतपुर ज़िला (राजस्थान) के एक छोटे से गाँव 'ऐंचेरा' में हुआ। ये गाँव ब्रज क्षेत्र में अपनी प्राकृतिक व आध्यात्मिक स्थिति के लिए विख्यात है। यहाँ भगवान श्रीकृष्ण की लीलाएँ प्रत्यक्षतः दृष्टिगत होती हैं। उनकी लीलाओं की झलक यहाँ स्थित कदमखंडी में कदंब के वृक्षों पर आज भी दिखाई देती है। व्यक्तित्व: अध्यात्म की गहरी समझ अपने पिता स्व. श्री मोहन सिंह जी से मिली, जिन्हें माँ दुर्गा की भक्ति व पूर्ण समर्पण के लिए जाना जाता था। अरुण देशवाल की समाज की बुराइयों तथा मानव की अज्ञानता को लेकर गहरी सोच रही है। कृतित्व: अपनी शिक्षा पूरी कर वर्तमान में भारतीय सेना में अनुदेशक के पद पर कार्यरत हैं और लेखन कार्यों में सक्रिय हैं। आप हमेशा ही 'मानव कल्याण' हेतु प्रयासरत रहे, सामाजिक व सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर समाज सेवा को अपना उद्देश्य बनाया। आपकी शृंगार रस की कविताओं में एक सच्चा प्रेम और सत्य उजागर होता है तथा समाज पर आधारित एवं युवाओं को जोश और उत्प्रेरित करने वाली कविताओें पर आपकी लेखनी आज भी जारी है।