विष के प्रहार से विष्व के अधिकांष प्राणी पीडित होते रहे हैं। विष के दुष्प्रभाव से बचने हेतु प्राचीनकाल से चिकित्सा उपक्रम किये जाते रहे हैं। इन चिकित्सोपक्रम में मन्त्रप्रयोग, मणि-प्रयोग, अरिष्टाबन्धन, औषधयोगों को प्रयुक्त करने पर सफल परिणाम भी प्राप्त होते रहे हैं। विषचिकित्सा ग्रन्थ में वेद, पुराण, आयुर्वेद आदि में प्राप्त सर्पविष, वृष्चिकविष, लुताविष, कीटादि विषों की चिकित्सा के अनुभूतप्रयोग, शास्त्रीय औषधयोग और एकल वनस्पतियों के प्रयोगों का संकलन किया गया है। शास्त्रीय उपक्रमों के संकलन के साथ पष्चिम राजस्थान एवं गुजरात में रहने वाले ग्रामवासियों के विषनाषक अनभूतप्रयोगों का सप्रमाण संकलन किया गया है। विषनाषक प्रयोगों के संकलन के साथ इस उपक्रम में प्रयुक्त होने वाली औषधियों का सचित्र विवरण एवं पारिभाषिक षब्दावली को भी तालिकाबद्ध किया गया है जिससे विषय का समग्र स्फोटन हो सके। विषचिकित्सा ग्रन्थ की न केवल आयुर्वेदिक चिकित्सा पाठ्क्रम में अध्ययनरत छात्रों के लिए उपादेयता प्रत्यक्ष है अपितु सामान्यजन एवं सीमासुरक्षा बल के प्रहरी भी इसके अध्ययन से लाभान्वित हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त अगदतन्त्र में नवीन षोध हेतु प्रस्तुत ग्रन्थ दिषा देने का कार्य करेगा। सर्वजनहिताय बहुजनसुखाय के उद्देष्य से ग्रन्थीभूत यह कलेवर अवष्य ही उपकारक सिद्ध होगा।