अंजुम रहबर की ग़ज़ल की पहली पहचान यह है कि वो मोहब्बत की ग़ज़ल है I हमारे अहद की शयरात की शायरी की तारीख़ इस किताब के ज़िक्र के बग़ैर नामुकम्मल रहेगी I - डॉ. बशीर बद्र
अंजुम रहबर उम्र के उस हिस्से से निकल आई हैं जहाँ संजीदगी पर हंसी आती है I जज़्बात की पाकीज़ा तर्जुमानी लहज़े का ठहराव और अश्कों की रौशनाई से ग़ज़ल के हाथ पीले करने के हुनर ने उन्हें सल्तनत-ए-शायरी की ग़ज़लज़ादी बना दिया है I - मुनव्वर राना
अंजुम रहबर का जन्म मध्य प्रदेश के गुना जिले में हुआ था। उन्होंने उर्दू साहित्य में अपनी स्नातकोत्तर पढ़ाई पूरी और 1977 से मुशायरों और कवि संमेलनों में भाग लेना शुरू किया और एबीपी न्यूज़, एसएबी टीवी, सोनी पाल, ईटीवी नेटवर्क, डीडी उर्दू सहित कई राष्ट्रीय टेलीविजन चैनलों के लिए अपनी रचनाएँ पढ़ीं I हाल के वर्षों में, वे SAB टीवी पर 'वाह! क्या बात है!' पर भी दिखाई दीं I
हिंदी साहित्य में उनके योगदान को स्वीकार करते हुए अंजुम रेहबार को कई पुरस्कार प्राप्त हुए, जिनमें इंदिरा गांधी पुरस्कार १९८६, राम-रोख महर पुरस्कार, साहित्य भारती पुरस्कार, हिंदी साहित्य सम्मेलन पुरस्कार, अखिल भारतीय कविवर विद्यापीठ पुरस्कार, दैनिक भास्कर पुरस्कार, चित्रणश फिकर गोरखपुरी, गुना का गौरव पुरस्कार आदि शामिल हैं I