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Manjul Publishing
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El. knyga
186
Puslapiai
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उर्दू के सर्वकालिक महान शायरों में शुमार मीर तकी मीर, उर्दू शायरी के ख़ुदा के रूप में प्रसिद्द थे। रेख्ता यानी शुरुआती उर्दू। यह मीर की ही उर्दू थी जिसने ग़ालिब को फ़ारसी छोड़कर इसी ज़ुबान में लिखने को मजबूर किया। वैसे उस दौर के कुछ और मशहूर शायर जैसे सौदा, मज़हर, नज़ीर अकबराबादी और दर्द उर्दू में लिखने लगे थे, पर मीर का असर सबसे ज़्यादा था। सत्रहवीं और अट्ठारहवीं सदी उर्दू लेकर आई। उर्दू को डेरे की ज़ुबान कहा जाता था। ऐसा इसलिए कि अलग-अलग इलाकों के सैनिकों के जमावड़े में जो भाषाई तालमेल हुआ उससे उर्दू पैदा हुई। मीर का लिखना और उर्दू अपने पैरों पर खड़े होना लगभग एक ही समय हुआ। उर्दू मीर की उंगलियां थाम अहिस्ता-आहिस्ता अपना सफ़र तय करते हुए उनकी निगाहबानी मे'मीर' की शायरी केवल ग़ज़लों तक ही सीमित नहीं है। उन्होंने दर्जनों मसनवियां और मर्सिये भी लिखे हैं। उनकी ग़ज़लों को छह दीवानों में संगृहीत किया गया है जिनकी संख्या दो हज़ार से भी अधिक है। इसके अतिरिक्त उन्होंने लगभग पंद्रह हज़ार शे'र भी कहे'मीर' की शायरी जहां एक और सीधी-सादी है, वहीं उसमें कहीं-कहीं कटुता भी दिखाई देती है। यूं तो 'मीर' की शायरी में उनके आशिक़ाना मिज़ाज के दर्शन होते हैं, परन्तु उन्होनें इसके अलावा भी बहुत-कुछ लिखा है, जिसे वर्गीकृत करना अत्यन्त कठिन ही नहीं, बल्कि 'असम्भव' कहा जा सकता है'मीर' का नाम आज भी बड़ी श्रद्धा से लिया जाता है और भविष्य में भी दरमियाने क़द, कमज़ोर जिस्म और गेहुएं रंग के इस शाइर को उर्दू अदब की एक रौशन मीनार के रूप में उतने ही सम्मान के साथ याद किया जाता रहेगा।।

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ं जवान हुई।


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Apie autorių

ख़ुदा-ए-सुखन मोहम्मद तकी उर्फ मीर तकी "मीर" (1723 - 20 सितम्बर 1810) का आगरा में हुआ। वे उन्हें उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के महान शायर थे। मीर को उर्दू के उस प्रचलन के लिए याद किया जाता है जिसमें फ़ारसी और हिन्दुस्तानी के शब्दों का अच्छा मिश्रण और सामंजस्य हो। अहमद शाह अब्दाली और नादिरशाह के हमलों से कटी-फटी दिल्ली को मीर तक़ी मीर ने अपनी आँखों से देखा था। इस त्रासदी की व्यथा उनकी रचनाओं मे दिखती है। अहमद शाह अब्दाली के हमलों की तबाही के बाद वह १७८२ में लखनऊ आ गए और अंत तक यहाँ ही रहे।.

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