Patanjali Yog Darshan: Bestseller Book by Mridul Kirti: Patanjali Yog Darshan

· Prabhat Prakashan
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ऋषि पतञ्जलि प्रणीत पतञ्जलि योग दर्शन आत्म-भू-योग दर्शन हैं। यह अनन्य; अनूठा; अनुपमेय योग-दर्शन; जो अपने लिए आप ही प्रमाण है। इस अपूर्व और अद्भुत ग्रंथ के समान सृष्टि में कोई अन्य यौगिक ग्रंथ है ही नहीं। एक तरह से इसे प्रकृति की अद्भुत और चमत्कृत घटना कह सकते हैं।
‘पतञ्जलि योग दर्शन’ गणतीय भाषा में एवं सूत्रात्मक शैली में रचित; सृष्टि का एक अद्वितीय; यौगिक विज्ञान का विस्मयकारी ग्रंथ है; जिसमें मनुष्य के प्राण से लेकर महाप्राण तक की अंतर्यात्रा; मृण्मय से चिन्मय तक जाने का यौगिक ज्ञान; मूलाधार से सहस्रार तक ब्रह्मैक्य का आंतरिक ज्ञान; मर्म और दर्शन समाहित है।
योग-दर्शन जीव के पंचमय कोषों; अन्नमय; प्राणमय; मनोमय; ज्ञानमय कोषों के गूढ़ मर्म और उनमें छुपी शक्तियों को उजागर करता हुआ; देह के सुप्त बिंदुओं को जाग्रत् कर; विदेह की ओर उन्मुख कर आनंदमय कोष में प्रवेश कराने का विज्ञान है। साधना देह में रहकर ही होती है; विदेह अंतरात्मा साधना नहीं कर सकता; इसीलिए देह तो आत्मोन्नति का साधन है; अतः देह का स्वस्थ; संयमी और स्वच्छ रखना योग का ही अंग है। शरीर हेय नहीं; श्रेय पाने का साधन है। बिखराव तब आता है; जब हम देह को ही सर्वस्व मान लेते हैं।
यम; नियम; आसन; प्राणायाम और प्रत्याहार तक केवल देह के घटकों में समाहित शक्ति केंद्रों को जाग्रत करने का ज्ञान है। धारणा; ध्यान और समाधि अंतर्मन में निहित बिंदुओं को संयमित कर दिव्यता की ओर जाने का विज्ञान है। वस्तुतः योग-दर्शन ‘योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः’ के चारों ओर ही परिक्रमायित है क्योंकि साधना कठिन नहीं; किंतु मन का सधना कठिन है।

Ratings and reviews

4.3
13 reviews
EE 55 Jadhav Purushottam
November 29, 2020
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Mandar Puranik
November 19, 2022
good
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