प्रस्तुत कथा स्वतन्त्रता प्राप्ति के अवसर पर हुए देश विभाजन के परिणाम स्वरूप होने वाले विस्थापन, मार-काट, हिंसा तथा विस्थापित होने वाले लोगों की दारुण कथा को चित्रित करती है। कथा का नायक 16 वर्षीय चेलाराम साम्प्रदायिक हिंसा का शिकार हो गया। उसकी गर्दन पर कुल्हाड़ी से वार किए गए, किन्तु वह बच गया और उसे मृत्युंजय अर्थात् मृत्यु को जीतने वाला का सम्बोधन प्राप्त हो गया। समुचित उपचार न मिलने के बावजूद भी वह मृत्यु को मात देकर जीवन समर में तालठोक कर पुनः खड़ा हो गया। संकटों से जूझता हुआ वह निरंतर कर्म पथ पर बढ़ता गया। मृत्यु के पश्चात् अपनी देह का दान कर वह जीवन-मृत्यु के बीच में झूल रहे कई लोगों को जीवन देकर उन्हें मृत्यु पर जय पाने में सहायता कर, उसे दिए गए नाम मृत्युंजय को सार्थक कर गया।.
Grož. ir negrož. literatūra