कथाकार के रूप में प्रेमचंद अपने जीवनकाल में ही किंवदंती बन गए थे । उन्होंने मुख्यत: ग्रामीण एवं नागरिक सामाजिक जीवन को कहानियों का विषय बनाया है । उनकी कथायात्रा में श्रमिक विकास के लक्षण स्पष्ट हैं, यह विकास वस्तु विचार, अनुभव तथा शिल्प सभी स्तरों पर अनुभव किया जा सकता है । उनका मानवतावाद अमूर्त भावात्मक नहीं, अपितु उसका आधार एक प्रकार का सुसंगत यथार्थवाद है ।