सोचा एक छोटी सी किताब लिखु, कि किस्मत से पहले कुछ हो जाये मेरे जैसी हस्ती का तो, वैसे मरने का कोई सही वक्त थोडे ही होता है, देश के हालिया हालात देखते हुए, जैसे ये जो राहूल गांधी ने पहली यात्रा निकाली थी, भारतीय इतिहास की सबसे लंबी पदयात्रा और सबसे बडी पदयात्रा, कन्याकुमारी से कश्मीर तक, जिस पर हमने पहली किताब लिखी थी, उम्मीदो की बौछार शुभेच्छाओ के दौर, और अब राहूल फिर से निकल पडे मणीपूर से मुबंई तक की यात्रा पर जो, पहली यात्रा से भी लंबी और बडी यात्रा है, उसके बारे मे थोडा सोच मे पड गया हू कि, पता नही कभी हम सफल होंगे या नही होंगे, लेकिन हीरोगिरी मे खतरा तो होता ही है, हर कहानी का एंड होना ही है, पर मै यहा कुछ ज्यादा ही सोच रहे हू, सब कुछ प्लान के मुताबिक होंगा, होना ही चाहिए, राहूल गांधी जो कर रहे है, वो कर ही रहे है, पर हमे भी उनके साथ रहना चाहिए, चलना चाहिए,, क्योकि चलना ही तो मंजिल है.