बाद में कबीरधाम में मैं 18 वर्षीय ललित यादु से मिला, जो पूरी तरह हिंदी भाषी आबादी के हिसाब से अच्छी अंग्रेजी लिख-बोल लेते हैं। उनके पिता पान की दुकान चलाते हैं और उनके परिवार की आय 150 रुपए प्रतिदिन है। ललित बीए दूसरे वर्ष के छात्र हैं, उनका भाई बीएड कर रहा है और बहन 11वीं में पढ़ती है। वे प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना में डाटा मॉनिटरिंग असिस्टेंट के रूप में अंशकालिक काम भी करते हैं और हर माह 5 हजार रुपए कमा लेते हैं। वे यूपीएससी परीक्षा की भी तैयारी कर रहे हैं। शाम को वे गरीब बच्चों को सारे विषय निःशुल्क पढ़ाते हैं। चूँकि वे सरकारी स्कूल से पढ़े हैं, जहाँ कई विषयों के लिए अध्यापक नहीं हैं तो उन्हें लगता है कि अपने इलाके के लिए बच्चों की यह कठिनाई दूर करना उनका काम है। वे रोज अपनी बहन और कुछ खास मित्रों के साथ इंग्लिश बोलते हैं, ताकि इस विदेशी भाषा में महारत हासिल हो जाए। उनमें बहुत आत्मविश्वास है और मानते हैं कि वे जीवन में इसलिए आगे बढ़ रहे हैं, क्योंकि वे अन्य छात्रों को आगे बढ़ने में मदद करते हैं। —इसी पुस्तक से सुप्रसिद्ध लेखक एन. रघुरामन की ऐसी तात्कालिक और समसामयिक घटनाओं के प्रसंग लेकर लिखी गई प्रेरक और उत्प्रेरित करनेवाली पुस्तक।