संविधान पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हर कथन उनके सृजनशील चिंतन-मनन का द्योतक है। संविधान के शब्दों और अनुच्छेदों में परंपरागत वैधानिक शब्दावली है, वैसे ही जैसे कि तर्कबद्ध सूत्र होते हैं। उसे वे ही समझ सकते हैं, जिनकी उस शब्दावली में गति होती है। इसी अर्थ में यह बात एक मुहावरे के रूप में चल पड़ी थी कि संविधान तो वकीलों का स्वर्ग है। इससे यह बात निकलती है कि संविधान को वे ही समझ सकेंगे, जो कानून के जानकार हैं। इस कारण भी संविधान से नागरिक की एक तरह की दूरी बनी हुई थी। संविधान और नागरिक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक सेतु का निर्माण किया है। एक छोर पर नागरिक था, तो दूसरे छोर पर संविधान। उसे उनके बनाए सेतु ने जोड़ दिया है।
...भारत के संविधान के बारे में हर नागरिक को जिज्ञासा भाव से भरने के लिए जो जानना चाहिए, वह इस पुस्तक में है। इसलिए यह आशा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इन भाषणों से संविधान के बारे में उनके प्रति बनाए गए भ्रम का निवारण अवश्य होगा।