डाॅ. अशोक कुमार ‘मंगलेश’ कृत ‘निर्मला’ काव्य संग्रह मुक्त छंद में सहज, स्वाभाविक भावों को अनुप्रेरक अभिव्यक्ति मिली है। इसमें कृषक, प्रकृति, और बेटी को विशेष रूप से याद करते हुए सामाजिक, राजनीतिक और मानसिक समरसता स्थापित करने का सुन्दर प्रयास किया है। काव्य में अपने बड़ों के प्रति आदर और दूसरों के प्रति प्रेम की मोहकता और तरलता उभरी है। अपने समकक्ष स्नेहिल पात्र की याद तो हृदयस्पर्शी है ही। भाषा की सरलता, स्वाभाविकता, भावों की सहजता, संप्रेषणीयता और बोधगम्यता प्रभावी है। मुक्त छंद में रचित काव्य भावों की तरलता से अपनापन बोध करने वाला है। सृजनधर्म की साधना की सफलता पर प्रिय शिष्य डाॅ. अशोक कुमार मंगलेश को हार्दिक बधाई की कामना है कि आप स्वस्थ प्रसन्न रहकर साहित्य साधना कर आनंद बिखेरते रहें। -प्रो. नरेश मिश्र