Mujhse Milne Aaogi Kya: Mujhse Milne Aaogi Kya: Rediscovering Love and Connection in a Busy World

· Prabhat Prakashan
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आज के युग में अगर मौलिक कविता और मौलिक कवि की बात की जाए तो मैं यहाँ पर पंकज शर्मा का नाम लेना चाहता हूँ; जिन्होंने पत्रकारिता के साथ-साथ कविताओं के संसार में अपनी रचनात्मकता से अलग पहचान बनाई है। मैं कभी किसी के ऊपर ज़्यादा कुछ कहता नहीं। किसी के लिए भूमिकाएँ नहीं बाँधता लेकिन पंकज मेरे दिल के बहुत करीब हैं। उनके लेखन में एक अलग बात है जो कवियों की भीड़ में उन्हें अलग बनाती है। संस्कार और अपनी मिट्टी की परंपरा को गीतों में ढालकर प्रस्तुत करने की उनमें विशेष कला है। दो-तीन बार मैंने पंकज के साथ मंच साझा किया तो मैंने ये महसूस किया कि पंकज जब अपने गीत सुनाते हैं तो सुननेवाले खुद को भुलाकर उनके गीतों में डूब जाते हैं। ये एक कवि के लिए सबसे बड़ा उपहार होता है। पंकज आनेवाले दौर के बड़े गीतकार कहलाए जाएँगे; ये मेरा मानना है। उनकी आनेवाली पुस्तक ‘मुझसे मिलने आओगी क्या...’ को ढेरों शुभकामनाएँ और उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए यही कहूँगा कि पंकज जैसे कवि; पत्रकार और कोमल हृदयवाले लोग कम देखने को मिलते हैं...आशीर्वाद पंकज।
—संतोष आनंद
‘‘पंकज को पढ़ना ऐसे है जैसे किसी चित्रकार की पेंटिग को निहारना। एक संवेदनशील हृदय जो ख्वाब बुनता है और उन ख्वाबों को शक्ल देता है गीत; गज़ल या नज़्म की शक्ल में। पंकज का लेखन उन्हें युवा दिलों की धड़कन बनाता है। नई पीढ़ी में उनके गीतों के लिए दीवानगी रहती है। पंकज के दूसरे काव्य संग्रह के लिए मेरी ढेरों शुभकामनाएँ।’’
—श्वेता सिंह; सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर; आजतक

‘‘अपनी धुन में मगन रहने वाला; पीर और प्रेम को गीतों में गुनगुनानेवाले मस्तमौला रचनाकार हैं पंकज। उनकी रचनाएँ कभी दशकों पुराने दौर में ले जाती हैं तो कभी लगता है कि कल की ही कोई बात कही हो। कहा जा सकता है कि भविष्य की संभावनाओं के स्तंभ कवि हैं पंकज। मेरी दुआ है कि वो ऐसे ही गुनगुनाते रहें; लिखते रहें और मुसकराते रहें।’’
—सईद अंसारी; सीनियर एडिटर; आजतक

‘‘साहित्य में शब्द की मर्यादित ध्वनियों से लेकर; मंच से देखे-सुने जानेवाले कविता-कौशल तक; पंकज शर्मा धीरे-धीरे युवा-कविता का ‘नाम’ बनते जा रहे हैं। मैं जानता हूँ; पंकज आज जहाँ हैं; वहाँ से और आगे जाएँगे। सितारों में अपना नाम शुमार करवाएँ; उन्हें मेरी खूब सारी दुआएँ हैं। ’’
—आलोक श्रीवास्तव; कवि-पत्रकार

‘‘पंकज की कविताओं में एक अपनापन है। ओज की कविताएँ हों या प्रेम की; पंकज की कलम हर भाव को का़गज़ से होते हुए; पढ़ने और सुननेवाले के दिल तक ले जाने का माद्दा रखती है। उनकी यही ़खूबी; उनको अपने दौर के बा़की युवा कवियों से अलग करती है। पंकज को इस नए कविता संग्रह के लिए शुभकामनाएँ।’’
—रोहित सरदाना; एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर; आजतक

‘‘पंकज के गीत तो सबके मनमीत हैं। अकसर मौका मिला है पंकज के अनगढ़ गीतों या फिर तैयार गीतों का पहला श्रोता बनने का। और ये गीत क्या हैं हर उम्र और हर पड़ाव के दिलों की दास्ताँ हैं। मैं गारंटी से कह सकता हूँ कि ये गीत सुनते वक्त सबके जेहन में एक ही सीन चलता होगा; बस किरदार अपने-अपने होते होंगे...’’
—संजय शर्मा; एसोशिएट एडिटर; आजतक

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