सांख्यदर्शन के अनुसार; ईश्वर का अस्तित्व नहीं है।यह दर्शन कहता है कि जगत् का कोई ईश्वर नहीं हो सकता; क्योंकि यह वह हो तो अवश्य वह एक आत्मा ही होनी चाहिए और आत्मा या तो बद्ध होगी या मुक्त। जो आत्मा प्रकृति के अधीन है; प्रकृति ने जिस पर अपना आधिपत्य जमा लिया है; वह भला कैसे सृष्टि कर सकेगी ? वह तो स्वयं एक दास है। दूसरी ओर; यदि आत्मा मुक्त हो; तो वह क्यों इस जगतू-प्रपंच की रचना करेगी; क्यों इस पूरे संसार की क्रिया आदि का संचालन करेगी?
स्वामी विवेकानंद का विश्वास था कि पवित्र भारतवर्ष धर्म एवं दर्शन की पुण्यभूमि है। यहीं बड़े-बड़े महात्माओं तथा ऋषियों का जन्म हुआ; यही संन्यास एवं त्याग की भूमि है तथा यहीं; केवल यहीं आदिकाल से लेकर आज तक मनुष्य के लिए जीवन के सर्वोच्च आदर्श एवं मुक्ति का द्वार खुला हुआ है।
प्रस्तुत पुस्तक ' पतंजलि योग सूत्र ' में स्वामीजी ने सरलतम व्याख्या के साथ पतंजलि के योग दर्शन को पाठकों के सामने रखा है; ताकि एक सामान्य अभ्यासकर्ता भी इसका पूरा लाभ उठा सके। इस दृष्टि से यह उनकी एक श्रेष्ठतम कृति कही जा सकती है।
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