संतुष्टि कोई सांसारिक चीज़ नहीं है,
जिसे कहीं बाहर से प्राप्त किया जा सके
बल्कि यह एक ईश्वरीय गुण है, जो हम सबके अंदर है,
सतत है और हमारे जीवन का अंश है
– क्या आप अपने व्यक्तिगत रिश्तों में संतुष्टि महसूस करते हैं?
– क्या आप संतुष्टिभरी नींद ले पाते हैं?
– क्या आप अपने रोजमर्रा के या ऑफिस के कार्य में संतुष्टि पाते हैं?
– क्या आप अपने आध्यात्मिक जीवन से संतुष्ट हैं?
– वे कौन से कारण हैं, जो हमें पूर्ण संतुष्ट रहने से रोकते हैं?
– संतुष्ट रहने की कला सीखना क्यों ज़रूरी है?
– ऐसे कौन से उपाय हैं, जिनसे उन कारणों को दूर किया जा सकता है?
– संतुष्टि की ऐसी कौन सी अवस्था है, जिसे पाकर इंसान वापस असंतुष्टि की खाई में नहीं गिरता?
यदि आपके जीवन में भी किसी न किसी बात को लेकर असंतुष्टि है तो यह पुस्तक आपके लिए वरदान साबित होगी, जो आपको असंतुष्टि की भावना से मुक्ति दिलाकर, पूर्ण और स्थाई संतुष्टि की ओर ले जाएगी। क्योंकि इस ग्रंथ में उस संतुष्टि की बात नहीं की जा रही है, जो धूप में खड़े प्यासे की प्यास बूझने के बाद मिलती है… एक भूखे को खाना खाने के बाद मिलती है… या वर्षों बाद अपने किसी चाहनेवाले को गले लगाकर मिलती है।
यहाँ जिस संतुष्टि की बात की जा रही है वह इंद्रियों, पैसों या रिश्तों तक सीमित नहीं है बल्कि उसके भी परे परम संतुष्टि है। क्या इतना जानना काफी नहीं है, पुस्तक को खोलकर पढ़ने के लिए? तो उठाएँ एक कप टी, कौन सी टी? संतुष्टि!
सरश्री की आध्यात्मिक खोज का सफर उनके बचपन से प्रारंभ हो गया था। इस खोज के दौरान उन्होंने अनेक प्रकार की पुस्तकों का अध्ययन किया। इसके साथ ही अपने आध्यात्मिक अनुसंधान के दौरान अनेक ध्यान पद्धतियों का अभ्यास किया। उनकी इसी खोज ने उन्हें कई वैचारिक और शैक्षणिक संस्थानों की ओर बढ़ाया। इसके बावजूद भी वे अंतिम सत्य से दूर रहे।
उन्होंने अपने तत्कालीन अध्यापन कार्य को भी विराम लगाया ताकि वे अपना अधिक से अधिक समय सत्य की खोज में लगा सकें। जीवन का रहस्य समझने के लिए उन्होंने एक लंबी अवधि तक मनन करते हुए अपनी खोज जारी रखी। जिसके अंत में उन्हें आत्मबोध प्राप्त हुआ। आत्मसाक्षात्कार के बाद उन्होंने जाना कि अध्यात्म का हर मार्ग जिस कड़ी से जुड़ा है वह है - समझ (अंडरस्टैण्डिंग)।
सरश्री कहते हैं कि ‘सत्य के सभी मार्गों की शुरुआत अलग-अलग प्रकार से होती है लेकिन सभी के अंत में एक ही समझ प्राप्त होती है। ‘समझ’ ही सब कुछ है और यह ‘समझ’ अपने आपमें पूर्ण है। आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्त है।’
सरश्री ने ढाई हज़ार से अधिक प्रवचन दिए हैं और सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की हैं। ये पुस्तकें दस से अधिक भाषाओं में अनुवादित की जा चुकी हैं और प्रमुख प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की गई हैं, जैसे पेंगुइन बुक्स, हे हाऊस पब्लिशर्स, जैको बुक्स, हिंद पॉकेट बुक्स, मंजुल पब्लिशिंग हाऊस, प्रभात प्रकाशन, राजपाल अॅण्ड सन्स इत्यादि।