Vigyan Fantasi Kathayen: Bestseller Book by Prakash Manu: Vigyan Fantasi Kathayen

· Prabhat Prakashan
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168
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किस्सेकहानियों की तरह विज्ञान की दुनिया भी कम अचरज से भरी नहीं है।
विज्ञान फंतासी कथाएँ प्रकाश मनु की विज्ञान कथाओं का ताजा संग्रह है; जिसमें वैज्ञानिक तथ्यों के साथ ही खेल और कल्पना का भी वितान तना हुआ है और हर क्षण कुछ नया घटित हो रहा है; जो परीकथाओं की दुनिया से कहीं अधिक चित्ताकर्षक और जादुई है। मनुजी की विज्ञान कथाओं में कहीं उड़ते हुए रोबोटनुमा पेड़ की कल्पना है तो कहीं मन को नियंत्रित करनेवाले हाइटेक सुपर कंप्यूटर की। कहीं कोई रोबोट गिलगिल सेवन चौकीदार बनकर अपने रहस्यपूर्ण कारनामे से सबको अचंभित कर डालता है तो कहीं वह अनोखी चिडि़या शिंगाई फू शुम्मा के रूप में एक छोटे बच्चे को लंबी अंतरिक्ष यात्रा पर ले चलता है। ‘मंगल ग्रह की लाल चिडि़या’ और ‘चंद्रलोक की अदृश्य दुनिया’ सरीखी कहानियाँ चाँद और मंगल ग्रह पर मनुष्य अस्तित्व की संभावना की कुछ अधिक कल्पनाशीलता के साथ पड़ताल करती हैं। ‘गोपी की फिरोजी टोपी’ और ‘पप्पू की रिमझिम छतरी’ में कंप्यूटर और लेजर किरणों की दुनिया का एक आश्चर्यलोक है; जो आज भले ही खेल की तरह लग रहा हो; पर कल हकीकत में बदल सकता है। पुस्तक में ‘दुनिया का सबसे अनोखा सुपर हाइटेक चोर’ जैसी रोमांचक कहानियाँ हैं तो ‘प्रोफेसर जोशी बादलों के देश में’ जैसी अद्भुत कथाएँ भी; जो परीकथाओं के समांतर उड़ती हुई अपनी राह बनाती हैं।

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About the author

Prakash Manu

जन्म : 12 मई, 1950, शिकोहाबाद ( उप्र.)।

प्रकाशन : ' यह जो दिल्ली है ', ' कथा सर्कस ', ' पापा के जाने के बाद ' ( उपन्यास); ' मेरी श्रेष्‍ठ कहानियाँ ', ' मिसेज मजूमदार ', ' जिंदगीनामा एक जीनियस का ', ' तुम कहाँ हो नवीन भाई ', ' सुकरात मेरे शहर में ', ' अंकल को विश नहीं करोगे? ', ' दिलावर खड़ा है ' ( कहानियाँ); ' एक और प्रार्थना ', ' छूटता हुआ घर ', ' कविता और कविता के बीच ' (कविता); ' मुलाकात ' (साक्षात्कार), ' यादों का कारवाँ ' (संस्मरण), ' हिंदी बाल कविता का इतिहास ', ' बीसवीं शताब्दी के अंत में उपन्यास ' ( आलोचना/इतिहास); ' देवेंद्र सत्यार्थी : प्रतिनिधि रचनाएँ ', ' देवेंद्र सत्यार्थी : तीन पीढ़ियों का सफर ', ' देवेंद्र सत्यार्थी की चुनी हुई कहानियाँ ', ' सुजन सखा हरिपाल ', ' सदी के आखिरी दौर में ' (संपादित) तथा विपुल बाल साहित्य का सृजन ।

पुरस्कार : कविता-संग्रह ' छूटता हुआ घर ' पर प्रथम गिरिजाकुमार माथुर स्मृति पुरस्कार, हिंदी अकादमी का ' साहित्यकार सम्मान ' तथा साहित्य अकादेमी के ' बाल साहित्य पुरस्कार ' से सम्मानित । ढाई दशकों तक हिंदुस्तान टाइम्स की बाल पत्रिका ' नंदन ' के संपादकीय विभाग से संबद्ध रहे । इन दिनों बाल साहित्य की कुछ बड़ी योजनाओं को पूरा करने में जुटे हैं तथा लोकप्रिय साहित्यिक पत्रिका ' साहित्य अमृत ' के संयुका संपादक भी हैं । "

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