Pratigya: Bestseller Book by Premchand: Pratigya

· Prabhat Prakashan
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‘अरे ब्वारी, क्या हुआ वीरू को?’ लरजता स्वर, भीगी हुई आँखें, कँपकँपाता शरीर।

‘कुछ नहीं बताते, माँजी।’ सुनीता ने आगे बढ़ थाम लिया उन्हें।

‘अरे, क्यों नहीं बताता? किसने किया तेरा ये हाल?’ और फिर साथ आए युवकों को भी ले लिया आड़े हाथ।

‘िकससे दुश्मनी है मेरे वीरू की? यह तो सबका भला ही कर रहा है।’

सब खामोश थे। जानते थे, किससे दुश्मनी है वीरू की। किसके आँख की किरकिरी बन गया है वीरू। लेकिन उसकी पत्नी और माँ कहीं घबरा न जाएँ, इसलिए चुप रहे।

‘कहीं उन शराबवाले गुंडों ने तो मारपीट नहीं की?’ आशंकित भगुली देवी ने साथ आए युवक से पूछा।

‘सुरू, तू बता। ये तो बताएगा नहीं। वही थे न? कितनी बार कहा इससे, मत ले उन लोगों से दुश्मनी।’ उसने झट दूसरे साथी से सवाल किया।

एक महिला का अपने ऊपर हो रहे अत्याचार-अनाचार के विरुद्ध खड़े होकर लोहा लेने की प्रतिज्ञा करने की संघ%ाZ-गाथा। समाज-िवरोधी तत्त्वों की बढ़ती धींगामस्ती, मनमानी, धनलोलुपता एवं व्यसनप्रियता को उजागर करता तथा सभ्य समाज की मूकदर्शक बने रहने की प्रवृत्ति को आईना दिखाता एक प्रेणादायी उपन्यास।

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लेखकाविषयी

जन्म : 15 अगस्त, 1959, ग्राम-पिनानी, जनपद-पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड (हिमालय), भारत। कृतियाँ : अब तक ढाई दर्जन से अधिक काव्य संकलन, कथा संग्रह व उपन्यास आदि प्रकाशित। ‘ऐ वतन तेरे लिए’ काव्य संकलन का तमिल व तेलुगु व ‘खड़े हुए प्रश्‍’ कथा संग्रह का तमिल व मराठी में, ‘बस एक ही इच्छा’, ‘प्रतीक्षा’ व ‘तुम और मैं’ कृतियों का जर्मन भाषा, ‘खड़े हुए प्रश्‍न’ कहानी संग्रह का फ्रेंच एवं ‘भीड़ साक्षी है’ का अंग्रेजी में अनुवाद। कई कहानियों का रूसी भाषा में अनुवाद। अनेक विश्‍वविद्यालयों में साहित्य पर शोधकार्य। सम्मान : राष्‍ट्रभक्‍त‌ि से ओत-प्रोत उत्कृष्‍ट रचनाओं हेतु तीन बार राष्‍ट्रपति भवन में सम्मानित। ‘डॉक्टर ऑफ साइंस’ व ‘डी.लिट.’ की मानद उपाधि। उत्कृष्‍ट साहित्य सृजन हेतु दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, तमिलनाडु हिंदी अकादमी व भाषा संगम, चेन्नई द्वारा सम्मानित। देश-विदेश की सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक संस्थाओं द्वारा अनेक बार सम्मानित। ‘हिमालय का महाकुंभ-नंदा राजजात’ कृति को ‘राहुल सांकृत्यायन राष्‍ट्रीय पर्यटन पुरस्कार’; बेंगलुरु मे आयोजित विश्‍व संस्कृत मेले में सम्मानित।

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