गांधीजी के सामाजिक तथा राजनीतिक सरोकारों ने उनके समकालीन वैश्विक परिदृश्य पर गहरा असर डाला था, और भारतीय साहित्य भी उससे अछूता नहीं रहा था। वे सरोकार आज भी उतने ही प्रासंगिक है और वह असर अब भी उतना ही मूल्यवान है, और सत्य और अहिंसा की तरह ही वह देशकाल से बाधित नहीं है।
मुंशी प्रेमचन्द ने साहित्य में सोद्देश्यता का, बिना किसी वाद से बँधे, जैसा मणिकांचन समावेश किया, वह धीरे-धीरे दुर्लभ होता जा रहा है। सोद्देश्यता के पीछे जो सहृदयता अधिष्ठित है, उसे अब अतिभावुक सरलीकरण कहा जाने लगा है। किन्तु सबके उदय का, सर्वोदय के जिस भाव का अभिसिंचन गांधीजी आजीवन करते रहे, वह भाव कभी भी कालबाह्य नहीं हो सकता।
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