रदेश, देश और विदेश के अनेक हिस्सों में भ्रमण करने के दौरान आँखों ने जो देखा, मन ने जो महसूस किया, वह ‘कोई दर्द छू रहा है’ के रूप में संकलित हुआ है।यह काव्य संग्रह है। इसमें गीत-नवगीत भी हैं, ग़ज़लें भी हैं और कुछ मुक्तक भी हैं। गीतों की बात करें तो पुरुषार्थ अपने अग्रज यशस्वी कवि श्री राघवेन्द्र प्रताप सिंह के कदम से कदम मिलाकर चलता दिखाई देता है। इन गीतों में अपनी धरती, अपना समय और अपना समाज बड़ी सिद्दत से मुखर हुआ है। ‘खुद को सुनते रहें इसलिए गा रहे हैं’, ‘आज खुद से मिले’, ‘खुद को सहलाकर सँभलते हुए’ जैसी गीत-पंक्तियों के माध्यम से कवि पहले अपने वजूद को तलाशता है तब जाकर आगे की बात करता है -