SANDHA BADALTANA

· MEHTA PUBLISHING HOUSE
5.0
1ଟି ସମୀକ୍ଷା
ଇବୁକ୍
340
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ଏହି ଇବୁକ୍ ବିଷୟରେ

ब्रिटिश आमदनीत रेल्वेसेवा सुरूहोण्याच्या काळात बडोदा संस्थानात झालेली राजकीय, सामाजिक उलथापालथ...भारताला स्वातंत्र्य मिळालं तेव्हा देशात सुमारे साडेसहाशे संस्थानं होती. ही संस्थानं ब्रिटिश अमलाखाली नव्हती. त्यांची स्वत:ची स्वतंत्र राज्यव्यवस्था होती. त्यांच्यापैकी काहींनी स्वत:ची रेल्वेही सुरू केली होती. बडोदा हे अशा संस्थानांपौकी पहिलं. भारतातला पहिला रूळमार्ग (रेल्वे) ब्रिटिश अमलाखालच्या भागात बोरीबंदर (आताचं सी.एस.टी. छत्रपती शिवाजी टर्मिनस) ते ठाणे असा १८५३ साली बांधला गेला आणि देशात वेगाचं युग सुरूझालं. हे काम एका ब्रिटिश कंपनीनं केलं होतं. रेल्वेमुळे व्यापार जोमानं वाढू लागला आणि दळणवळण सुलभ झालं.त्या अनुभवावरून संस्थानिकांनाही आपल्या राज्यात रेल्वेसेवा सुरूकरण्याची इच्छा झाली नसती तरच नवल. सर्वात पहिला संस्थानी रूळमार्ग सुरू करण्याचा मान बडोदा संस्थानाकडे जातो. ते काम १८६२ साली सुरू झालं, पण तांत्रिक त्रुटींमुळे वाफेच्या इंजिनानं ओढल्या जाणाऱ्या आगगाडीऐवजी बैलांनी ओढली जाणारी ट्रॅम सुरूझाली. अखेर १८७३ साली डभोई ते करजण-मियागाम हा साधारण २० मैलांचा (३१-३२ कि.मी.) रूळमार्ग सुरू झाला. तेव्हा बडोद्यावर मल्हारराव गायकवाड राज्य करत होते. हा मार्ग सुरू होण्याच्या काळात बडोद्यात बरीच राजकीय उलथापालथ होत होती आणि त्यामुळे समाजजीवन ढवळून निघत होतं. बडोद्यातील ब्रिटिश रेसिडेंट आणि मल्हारराव यांच्या संघर्षाचा तो काळ होता. ब्रिटिशांच्या वाढत्या प्रभावाचा काळ होता. अखेरीस ब्रिटिशांनी मल्हाररावांना पदच्युत केलं आणि सयाजीराव गायकवाड राज्यावर आले. १८७५ पासून त्यांची कारकीर्द सुरू झाली. या काळातल्या बडोद्यातील धामधुमीचं आणि बदलत्या राजकीय-सामाजिक परिस्थितीचं चित्रण करणारी शुभदा गोगटे यांची ही कादंबरी. 

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