SANGAVESE VATLE MHANUN

· MEHTA PUBLISHING HOUSE
৩.০
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ইবুক
180
পৃষ্ঠা
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এই ইবুকখনৰ বিষয়ে

प्रसन्न शैलीतील सुंदर ललितलेख

कविता आणि गीते यांच्याइतकाच ललितलेखन हाही शान्ताबाईंच्या आवडीचा साहित्यप्रकार आहे. आतापर्यंत वेगवेगळ्या नियतकालिकांतून त्यांनी सदर लेखनाच्या निमित्ताने ललितलेख लिहिले आहेत, त्याप्रमाणे स्वतंत्रपणेही असे लेखन त्यांनी विपुल केले आहे. भोवतालच्या जगाविषयीचे अपार कुतूहल, मनुष्यस्वभावाचे कंगोरे न्याहाळण्याची आवड आणि स्वतःला आलेले सुक्ष्मातिसूक्ष्म अनुभवही इतरांपर्यंत पोहोचवण्याची उत्सुकता या शान्ताबाईंच्या ललितलेखनामागील प्रमुख प्रेरणा आहेत. भरपूर वाचनामुळे येणारी संदर्भसंपन्नता, काव्यात्म वृत्तीतून निर्माण होणारी रसवत्ता आणि उत्कट जीवनप्रेम यांमुळे त्यांचे ललितलेख अत्यंत वाचनीय झाले आहेत. 'आनंदाचे झाड', 'पावसाआधीचा पाऊस', 'संस्मरणे', 'मदरंगी', 'एकपानी', या त्यांच्या ललितलेख-संग्रहाच्या परंपरेतलाच 'सांगावेसे वाटले, म्हणून' हा आणखी एक वैशिष्ट्यपूर्ण संग्रह. 'हेमाला मुलगी झाली', 'ययातीचा वारसा', 'फसवी दारे', 'संतुष्ट', 'मॅडम', 'पुन्हा पुन्हा ज्युन इलाइझ' या आणि यांसारख्याच इतर अनेक सुरेख लेखांनी वाचकांना तो जितका रंजक, तितकाच उदबोधक वाटेल, यात शंका नाही... 


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