SARTYA SARI

· MEHTA PUBLISHING HOUSE
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ज्यांनी वाचकांना भरभरून दिले त्या सारस्वतच्या लेखनाची ही भौरवी.

  जे न देखे रवि..... अशी अलौकिक प्रतिभा लाभलेले कथाकार वि. स. खांडेकर. `सरत्या सरी’ हा त्यांचा असंकलित कथांचा अंतिम संग्रह. १९७४ ते १९७६ या उत्तर काळातील कथांत सांकेतिकता, भावुकता, तरलता नि जीवनलक्ष्यी वृत्ती दिसून येते. माणुसकीच्या गहिवरांनी ओंथबलेल्या या कथा लेखकानी प्रज्ञाचक्षूंनी जीवन न्याहाळत लिहिल्या. कथा केवळ शब्दप्रभू असता कामा नये, तर ती संवेदनगर्भ हवी, अशी प्रचिती आल्यानंतर लिहिलेल्या या कथा लेखकाच्या प्रतिभेच्या सरत्या सरी. त्या जीवनाचा विद्युत प्रकाश घेऊन येतात नि ढगाआडच्या चांदण्यांची शीतलताही ! या `सरत्या सरी’नी माणुसकीच्या नंदादीपाची सांजवात विझली, तरी मराठी शारदेचा गाभारा तिच्या विचार दरवळांनी मात्र नेहमीच सुगंधित राहील.

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