SURAMYA SURYAST

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मावळतीच्या सूर्योस्तासारखं म्हातारपण... मानलं तर निवांतपण, मानलं तर मानसिक खळबळ... या उतारवयाचा स्वीकार करणं आणि ते आनंददायी करणं इतकंही अवघड नाही. पण त्यासाठी हवा असतो, थरथरत्या हातांना आधार देणारा एक सच्चा मार्गदर्शक, हे पुस्तक असंच मावळतीचा सूर्यास्त सूरम्य करणारा मार्गदर्शक आहे. दिनकर जोषी या पुस्तकात म्हातारपणातील शारीरिक, मानसिक, आर्थिक अशा अनेक प्रश्नांचा सांगोपांग आढावा घेतात. आणि म्हातारपणाचा विचार केवळ म्हातारपणीच करायचा नसतो, याची खोल जाणीवही पेरतात.

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