SUVARNAMUDRA

· MEHTA PUBLISHING HOUSE
4.5
2ଟି ସମୀକ୍ଷା
ଇବୁକ୍
116
ପୃଷ୍ଠାଗୁଡ଼ିକ
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ଏହି ଇବୁକ୍ ବିଷୟରେ

 ज्येष्ठ साहित्यिक शांता शेळके यांचा व्यासंग आणि पाठांतर दांडगे आहे. त्यांना सवय अशी आहे की वाचताना जे जे काही स्वत:ला आवडेल ते ते वहीत लिहून ठेवायचे. यात कवितांच्या ओळी, थोरांची वचने, सुभाषिते, विनोद, दुर्मिळ माहितीपर मजकूर असे सगळे असते. या संग्रहित केलेल्या मजकुराचे संकलन यापूर्वी 'मधुसंचय’ या नावाने प्रकाशित झाले होते. पण त्यांचे भांडारच इतके मोठे आहे की दुसरा संग्रह येणे अपरिहार्यच होते. त्याप्रमाणे 'सुवर्णमुद्रा’ या नावाने हे पुस्तक मेहता पब्लिशिंगने प्रकशित केले आहे. सोन्याच्या मोलाच्या मुद्रित साहित्याचे संकलन असाही अर्थ शीर्षकातून निघू शकेल म्हणूनच या पुस्तकाला 'सुवर्णमुद्रा’ असे नाव दिले आहे. या पुस्तकात संत कबीर, संत तुकाराम, विनोबा भावे , संत रामदास अशा संतांचे अभंग आहेत. तसेच सॉमरसेट मॉम, मार्टिन ल्यूथर किंग, मायकेल ऍजेलो अशांचे काही विचार आहेत. कधी तरी कोणत्याही लेखकाचे नाव नसलेला पण विलक्षण चित्रमय शैलीतला एखादा परिच्छेदही (पृ.19 मांजराचे पिल्लू) वाचायला मिळतो. शांताबाईंची रसिकता, सौंदर्यदृष्टी, सहृदयता, उत्कटतेची ओढ या सगळ्याचा प्रत्ययच या पुस्तकात येतो. त्यांनीच म्हटल्याप्रमाणे हे समृद्ध भांडार वाचकांना खात्रीने रंजक व उद्बोधक वाटेल.

ମୂଲ୍ୟାଙ୍କନ ଓ ସମୀକ୍ଷା

4.5
2ଟି ସମୀକ୍ଷା

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