संख्या मनीषा नामक पुस्तक में एक से 100 तक की वाचक संख्याओं का वर्णन हैं । भारतीय साहित्यकारों, ऋषियों और मुनियों ने अपनी लेखनी को प्रभावशाली बनाने के लिए और अपनी विचारधारा में गति और प्रवाह भरने के लिए संख्याओं का प्रयोग लोकोक्तियों मुहावरों और भूत संख्याओं के रूप में किया । जैसें - एक भगवान, दो पक्ष, आठ नाग, 84 आसन और सौ कौरव आदि-आदि । "संख्या मनीषा" में मानव की जिज्ञासा को पूर्ण करने के लिए ही एक से 100 तक की संख्याओं का नाम सहित वर्णन किया गया है। जो जनमानस के लिए ज्ञानवर्धक और रुचिकर होगी
हरियाणा की पवित्र भूमि और कपिल मुनि की तपोस्थली जिला कैथल के गांव भाना (पाई) के अत्री गोत्रोत्पन्न एक ब्राह्मण परिवार में जन्म हुआ। प्रथम कक्षा से लेकर स्नातक तक की शिक्षा ग्रामीण पृष्ठभूमि से ही प्राप्त की । स्नातकोत्तर की शिक्षा कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र से प्राप्त की । मैंने बचपन में गांव के बुजुर्गों से 'सौ का जोड़' नामक रागनी सुनी । उसी रागनी से मुझे वाचक संख्याओं के गुढ रहस्य को जानने की प्रेरणा मिली और उसके बाद मैंने अनेक पुस्तकालयों, मठों और मंदिरों में जाकर प्राच्य वाड्मय में छिपी वाचक संख्याओं को खोजना आरंभ किया । "संख्या मनीषा" प्राचीन भारतीय वाड्मय और भारतीय समाज में प्रचलित संख्यात्मक अवधारणाओं का प्रौढ़ स्वरूप है। संख्याओं के सैद्धांतिक रूप का उल्लेख जो हमारे वेद शास्त्रों में मिलता है, उसे भारतीय समाज में किस रूप में व्यवहार में लाया जाता था। उसका उल्लेख इस ग्रंथ में बहुत परिश्रम से किया है लेखक ने ।