दशकों से लिखते लिखते, अब तो ऐसा लगता है कि शब्दों को लेखनी के माध्यम से भावों का जामा पहनाते हुए काग़ज़ पर उतारे बिना इस जीवन को जीना असम्भव सा है। साधारण बात भी कहती हूँ तो कभी कभी कोई कह देता है कि ये कविता कह कर क्यों बोला? जीवन में रची बसी, यादों के साथ घुलि मिलि, भावों की चाशनी में लिपट कर प्रस्तुत हैं कुछ कविताएँ।