Chhavi Darpan: Poetry

· Uttkarsh Prakashan
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अमित प्रतिभाओं व क्षमताओं के धनी व साहित्य श्री मदूर्जित जालौन जनपद की साहित्य सुरभित सौंधी सुगन्धित रसा के सर्वथा पूजनीय, वन्दनाभिनन्दनीय श्री श्यामसुन्दर सौनकिया की कृति ‘छवि दर्पण’ के कुछ गीतों का अवलोकन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । अनुशीलनोपरान्त इस निष्कर्ष पर आता हूँ कि वस्तुतः यह कृति गीतों का दर्पण है, तो इसमें छवियों का दर्शन भी है । कृति के मर्मस्पर्शी गीत मन को रसाद्रित व भावाद्रित कर देते हैं । फिराक गोरखपुरी ने कहा था - ‘तुम सामने हो मुख़ातिब भी तुम को देखें कि तुमसे बात करें।’ सत्य है कि गीत मुख़ातिब है तो उसे पढ़ा जाये या अन्तःकरण में उतारा जाये। पद्मश्री नीरज जी कहा करते हैं कि ‘अपने को पाने की कला कविता है, अपने को खोने की कला गीत है ।’ डाॅ. नागेन्द्र जी भी गीत को वाणी का सबसे तरल रूप मानते हैं । डाॅ. सौनकिया जी की यह विशेषता रही है कि उनके गीत अन्तस से जन्म लेते हैं और रसज्ञों के अन्तस को ही स्पर्श करते हैं । डाॅ. सौनकिया जी ने गीतों को रचा ही नहीं है, अपितु उनको जिया भी है - ‘गीत का दर्द उस आदमी से कहो जिसने आँसू पिया पर बहाया न हो वर्तिका की तरह जो जला हो स्वयं रोशनी की शिखा को बुझाया न हो ।’ सौनकिया के सन्दर्भ में ये पंक्तियाँ सटीक हैं । उन्होंने अपना जीवन वर्तिकावत् जलाकर स्वयं को रचना संसार में खरा कुन्दन सिद्ध किया है । इनकी व्यक्तिगत अनुभूति व्यक्तिगत न होकर समष्टिगत हो गई है । सुकवि डाॅ. सौनकिया की इस कृति के पूर्व अनेक कृतियाँ पाठकों के समक्ष आ चुकी हैं । व्यथा-कथा है मेरी पाती, अन्तर्बोध, सिंहासन, ईश्वरानुसंधान तथा अन्तश्चेतना के स्वर के अतिरिक्त प्रस्तुत कृति ‘छवि दर्पण’ आपकी श्रेष्ठ रचनायें हैं । इनके लिये कवि बधाई का पात्र है । नारी से सन्दर्भित कवि भावना श्लाघ्य एवं ऊर्जस्वित है । ‘नारी की पूजा होती है सुरगण निवास करते हैं ।’ की भावभूमि ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’ से कमतर नहीं आँकी जा सकती है । ‘दुष्ट दलन हित प्रखर धार शमशीर बनेगी नारी’ में नारी की भविष्योन्मुखी दृष्टि है ।

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علي محمد مهد لي
March 31, 2024
وف زت ده عن ده عن
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